Friday 8 January 2016

आखिर क्या है इसका रहस्य?क्यों बनाए गए हैं ऊंचे पहाड़ों पर देवी मंदिर?

ऊंचे पहाड़ों पर बने देवी मंदिरों की बात होती है तो सबसे पहला नाम कश्मीर की वैष्णो देवी फिर हिमाचल की ज्वाला देवी, नयना देवी, मध्य प्रदेश की मैहरवाली मां शारदा, छत्तीसगढ़ डोँगरगढ़ की बम्लेश्वरी मां,पावागढ़ वाली माता का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। इनके अलावा हमारे देश में ऐसे कितने ही प्रसिद्ध मंदिर हैं जो ऊंचे पहाड़ों पर बने हैं।
आखिर अब प्रश्न उठता है कि ये मंदिर पहाड़ों पर क्यों बने हैं? पहाड़ों पर ऐसा क्या है जो समतल जमीन पर नहीं है? इस संबंध में जानकार लोग कहते हैं कि पहले और आज भी इन स्थानों को साधना केंद्र के रूप में जाना जाता था। पहले ऋषि-मुनि ऐसे स्थानों पर सालों तपस्या करके सिद्धि प्राप्त करते थे और उसका उपयोग मनुष्य के कल्याण के लिए करते थे। पहाड़ों पर एकांत होता है। धरती पर इंसान ज्यादातर समतल भूमि पर ही बसना पसंद करते हैं। लोगों ने घर बनाने के लिए पहाड़ी इलाकों की बजाय मैदानी क्षेत्रों को ही प्राथमिकता दी है। एकांत ने ही देवी मंदिरों के लिए पहाड़ों को महत्व दिया है। कार्य चाहे सांसारिक हो या आध्यात्मिक, उसकी सफलता मन की एकाग्रता (concentration of mind) पर ही निर्भर रहती है। पहाड़ों पर मन एकाग्र आसानी से हो जाता है। मौन, ध्यान एवं जप आदि कार्यों के लिए एकांत की जरूरत होती है और इसके लिए पहाड़ों से अच्छा कोई स्थान नहीं हो सकता।
प्राकृतिक सौन्दर्य- पहाड़ी क्षेत्रों पर इंसानों का आना-जाना कम ही रहता है, जिससे वहां का प्राकृतिक सौन्दर्य अपने असली रुप में जीवित रह पाता है। यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि सौन्दर्य इंसान को स्फूर्ति और ताजगी प्रदान करता है। कई बार लोगों को डॉक्टर भी पहाड़ी इलाके में कुछ दिन बिताने की सलाह देते हैं।
ऊंचाई का प्रभाव- वैज्ञानिक विश्लेषणों में पाया गया है कि निचले स्थानों की बजाय अधिक ऊंचाई पर इंसान का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। लगातार ऊंचे स्थान पर रहने से जमीन पर होने वाली बीमारियां खत्म हो जाती हैं। ऐसे में पहाड़ी स्थानों पर इंसान की धार्मिक और आध्यात्मिक भावनाओं का विकास जल्दी होता है।
इनका कहना है- भोपाल के प्रख्यात ज्योतिषि पंडित प्रहलाद पंड्या का कहना है कि पहाड़ों पर दैवीय स्थल होने की वजह यह है कि देवी राजा हिमाचल की पुत्री हैं। इन्ही के नाम पर अब हिमाचल प्रदेश है। इस स्थान को देवभूमि भी कहा जाता है। देवी का जन्म यहीं हुआ इसी कारण से इन्हें पहाड़ों वाली माता कहा जाता है। देखा जाए तो देवी राक्षसों के नाश के लिए अवतरित हुईं थीं। राक्षस मैदानी इलाके से आते थे और देवी पहाड़ों से उनको देख उनका वध कर देती थीं। इसलिए भी देव स्थान ऊंचे पहाड़ों पर हैं।
माता वैष्णो देवी
वैष्णो देवी माता रानी और वैष्णवी के रूप में भी जानी जाती हैं। ये मंदिर जम्मू और कश्मीर के जम्मू जिले में कटरा नगर में त्रिकुटा पहाड़ियों पर है। ये मंदिर 5,200 फीट की ऊंचाई और कटरा से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर है। हर साल लाखों तीर्थयात्री मंदिर का दर्शन करते हैं। माता वैष्णो देवी को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। एक प्रसिद्ध प्राचीन मान्यता के अनुसार, माता वैष्णो के भक्त श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर मां ने उसकी लाज रखी और दुनिया को अपने अस्तित्व का प्रमाण दिया।
ज्वाला देवी मंदिर
ये मंदिर हिमाचल प्रदेश की कांगडा घाटी से 30 दूर पहाड़ी पर है। यह मंदिर 51 शक्ति पीठों में शामिल है। उन्हें जोता वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है। ज्वालामुखी मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवों को जाता है। उन्हीं के द्वारा इस पवित्र धार्मिक स्थल की खोज हुई थी। इस स्थान पर माता सती की जीभ गिरी थी। इस मंदिर में माता के दर्शन ज्योति रूप में होते है। ज्वालामुखी मंदिर के समीप में ही बाबा गोरा नाथ का मंदिर है। जिसे गोरख डिब्बी के
नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का प्राथमिक निमार्ण राजा भूमि चंद के करवाया था। बाद में महाराजा रणजीत सिंह और राजा संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निमार्ण कराया। मंदिर के अंदर माता की नौ ज्योतियां है जिन्हें, महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजी देवी के नाम से जाना जाता है।
यहां आते हैं दो वीर
मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्थित मैहर माता मंदिर के बारे में श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां रात 2 से 5 बजे के बीच रुकने से मौत हो सकती है? दर्शन के लिए श्रद्धालुओं को 1,063 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। मंदिर में एक प्राचीन शिलालेख भी लगा हुआ है। यहां भगवान नृसिंह की प्राचीन मूर्ति विराजमान हैं जिसे साल 502 में लगवाया गया था। साथ ही, दो महान योद्धाओं आल्हा तथा ऊदल का भी दर्शन कर उनकी वीरता और महानता की वंदना करते हैं। आल्हा व ऊदल मां के बहुत समर्पित भक्त थे। उन्होंने 1182 में पृथ्वीराज चैहान से युद्ध भी किया था। आज भी लोकगीतों में उनकी वीरता और मां के प्रति भक्ति का उल्लेख किया जाता है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि दोनों भाइयों पर मां की असीम कृपा थी। उनका भी मां के प्रति अनुराग था। यहां तक कि वे आज भी मां के दर्शन करने आते हैं। मंदिर के पास ही आल्हा की स्मृति में एक सुंदर तालाब है। कहा जाता है कि इस इलाके में दोनों भाई जोर-आजमाइश के लिए कुश्ती का अभ्यास करते थे। आज भी वे अखाड़े उन वीरों की गाथा कहते हैं और लोग इन्हें दूर-दूर से देखने आते हैं।
मंदिर क्यों होता हैं बंद
मां शारदा के मंदिर को रात 2 से 5 बजे के बीच बंद कर दिया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि इसी अवधि में ये दोनों भाई मां के दर्शन करने आते हैं। दोनों भाई मां के दर्शन, पूजन के साथ ही उनका श्रृंगार भी करते हैं। इसलिए रात को 2 से 5 बजे के बीच यहां कोई नहीं ठहरता। श्रद्धालुओं की मान्यता है कि जो हठपूर्वक यहां रुकने की कोशिश करता है, उसकी मौत हो सकती है।
मनसा देवी मंदिर
मनसा देवी का मंदिर हरिद्वार में हरकी पौड़ी के पास गंगा किनारे पहाड़ी पर है। दुर्गम पहाड़ियों और पवित्र गंगा के किनारे स्थित मनसा देवी का उल्लेख पुराणों में है। ‘मनसा’ शब्द का प्रचलित अर्थ इच्छा है। मान्यता है कि मनसा देवी का जन्म संत कश्यप के मस्तिष्क से हुआ है। उन्हें नाग राजा वासुकी की पत्नी भी माना जाता है। हरिद्वार के चंडी देवी और माया देवी के साथ मनसा देवी को भी सिद्ध पीठों में प्रमुख माना जाता है। मनसा भगवान शंकर की कठोर तपस्या करके वेदों का अध्ययन किया और कृष्ण मंत्र प्राप्त किया, जो कल्पतरु मंत्र कहलाता है। इसके बाद देवी ने कई युगों तक पुष्कर में तप किया। भगवान कृष्ण ने दर्शन देकर वरदान दिया कि तीनों लोकों में तुम्हारी पूजा होगी।
नैना देवी मंदिर
ये मंदिर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में है। यह शिवालिक पर्वत श्रेणी की पहाड़ियों पर स्थित है। यह समुद्र तल से 11000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मान्यता है कि इस स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। मंदिर में पीपल का पेड़ मुख्य आकषर्ण का केन्द्र है जो कि अनेकों शताब्दी पुराना है। मुख्य द्वार के पार करने के पश्चात आपको दो शेर की प्रतिमाएं दिखाई देगी। दाईं तरफ माता काली की, मध्य में नैना देवी की और बाईं ओर भगवान गणेश की प्रतिमा है। पास ही में पवित्र जल का तालाब है जो मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है। मंदिर के समीप ही में एक गुफा है जिसे नैना देवी गुफा के नाम से जाना जाता है। पहले मंदिर तक पहुंचने के लिए 1.25 कि॰मी॰ की पैदल यात्रा कि जाती थी परन्तु अब मंदिर प्रशासन द्वारा मंदिर तक पहुंचने के लिए उड़़नखटोले का प्रबंध किया गया है।
मां बम्लेश्वरी मंदिर
छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ में स्थित है मां बम्लेश्वरी मंदिर। इसे कामाख्या नगरी भी कहा जाता है। छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ के इतिहास में कामकंदला और माधवानल की प्रेम कहानी बेहद लोकप्रिय है। लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व कामाख्या नगरी में राजा वीरसेन का शासन था। वे नि:संतान थे। संतान की कामना के लिए उन्होंने भगवती दुर्गा और शिवजी की उपासना की। इसके फलस्वरूप उन्हें एक साल के अंदर पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। वीरसेन ने पुत्र का नाम मदनसेन रखा। मां भगवती और भगवान शिव के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए राजा ने मां बम्लेश्वरी का मंदिर बनवाया।

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