Saturday 16 April 2016

चैत्र शुक्ल कामदा एकादशी की प्रचलित कथा

कामदा एकादशी जिसे फलदा एकादशी भी कहते हैं, श्री विष्णु का उत्तम व्रत कहा गया है. इस व्रत के पुण्य से जीवात्मा को पाप से मुक्ति मिलती है. यह एकादशी कष्टों का निवारण करने वाली और मनोनुकूल फल देने वाली होने के कारण फलदा और कामना पूर्ण करने वाली होने से कामदा कही जाती है. इस एकादशी की कथा श्री कृष्ण ने पाण्डु पुत्र धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई थी. इससे पूर्व राजा दिलीप को वशिष्ठ मुनि ने सुनाई थी.
चैत्र शुक्ल एकादशी की प्रचलित कथा
धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन्! मैं आपको कोटि-कोटि नमस्कार करता हूं. अब आप कृपा करके चैत्र शुक्ल एकादशी का महात्म्य कहिए. श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे धर्मराज! यही प्रश्न एक समय राजा दिलीप ने गुरु वशिष्ठजी से किया था और जो समाधान उन्होंने किया वो सब मैं तुमसे कहता हूं.
प्राचीनकाल में भोगीपुर नामक एक नगर था. वहां पर अनेक ऐश्वर्यों से युक्त पुण्डरीक नाम का एक राजा राज्य करता था. भोगीपुर नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर तथा गंधर्व वास करते थे. उनमें से एक जगह ललिता और ललित नाम के दो स्त्री-पुरुष अत्यंत वैभवशाली घर में निवास करते थे. उन दोनों में अत्यंत स्नेह था, यहां तक कि अलग-अलग हो जाने पर दोनों व्याकुल हो जाते थे.
एक समय पुण्डरीक की सभा में अन्य गंधर्वों सहित ललित भी गान कर रहा था. गाते-गाते उसको अपनी प्रिय ललिता का ध्यान आ गया और उसका स्वर भंग होने के कारण गाने का स्वरूप बिगड़ गया. ललित के मन के भाव जानकर कार्कोट नामक नाग ने पद भंग होने का कारण राजा से कह दिया. तब पुण्डरीक ने क्रोधपूर्वक कहा कि तू मेरे सामने गाता हुआ अपनी स्त्री का स्मरण कर रहा है. अत: तू कच्चा मांस और मनुष्यों को खाने वाला राक्षस बनकर अपने किए कर्म का फल भोग.
पुण्डरीक के श्राप से ललित उसी क्षण महाकाय विशाल राक्षस हो गया. उसका मुख अत्यंत भयंकर, नेत्र सूर्य-चंद्रमा की तरह प्रदीप्त तथा मुख से अग्नि निकलने लगी. उसकी नाक पर्वत की कंदरा के समान विशाल हो गई और गर्दन पर्वत के समान लगने लगी. सिर के बाल पर्वतों पर खड़े वृक्षों के समान लगने लगे तथा भुजाएं अत्यंत लंबी हो गईं. कुल मिलाकर उसका शरीर आठ योजन के विस्तार में हो गया. इस प्रकार राक्षस होकर वह अनेक प्रकार के दुःख भोगने लगा.
जब उसकी प्रियतमा ललिता को यह वृत्तांत मालूम हुआ तो उसे अत्यंत खेद हुआ और वह अपने पति के उद्धार का यत्न सोचने लगी. वह राक्षस अनेक प्रकार के घोर दुःख सहता हुआ घने वनों में रहने लगा. उसकी स्त्री उसके पीछे-पीछे जाती और विलाप करती रहती. एक बार ललिता अपने पति के पीछे घूमती-घूमती विन्ध्याचल पर्वत पर पहुंच गई, जहां पर श्रृंगी ऋषि का आश्रम था. ललिता शीघ्र ही श्रृंगी ऋषि के आश्रम में गई और वहां जाकर विनीत भाव से प्रार्थना करने लगी.
उसे देखकर श्रृंगी ऋषि बोले कि हे सुभगे! तुम कौन हो और यहां किस लिए आई हो? ललिता बोली कि हे मुने! मेरा नाम ललिता है. मेरा पति राजा पुण्डरीक के श्राप से विशालकाय राक्षस हो गया है. इसका मुझको महान दुःख है. उसके उद्धार का कोई उपाय बतलाइए. श्रृंगी ऋषि बोले हे गंधर्व कन्या! अब चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है, जिसका नाम कामदा एकादशी है. इसका व्रत करने से मनुष्य के सब कार्य सिद्ध होते हैं. यदि तू कामदा एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य का फल अपने पति को दे तो वह शीघ्र ही राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा और राजा का श्राप भी अवश्यमेव शांत हो जाएगा.
मुनि के ऐसे वचन सुनकर ललिता ने चैत्र शुक्ल एकादशी आने पर उसका व्रत किया और द्वादशी को ब्राह्मणों के सामने अपने व्रत का फल अपने पति को देती हुई भगवान से इस प्रकार प्रार्थना करने लगी- हे प्रभो! मैंने जो यह व्रत किया है इसका फल मेरे पतिदेव को प्राप्त हो जाए जिससे वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाए.
एकादशी का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त हुआ. फिर अनेक सुंदर वस्त्राभूषणों से युक्त होकर ललिता के साथ विहार करने लगा. उसके पश्चात वे दोनों विमान में बैठकर स्वर्गलोक को चले गए.
वशिष्ठ मुनि कहने लगे कि हे राजन्! इस व्रत को विधिपूर्वक करने से समस्त पाप नाश हो जाते हैं तथा राक्षस आदि की योनि भी छूट जाती है. संसार में इसके बराबर कोई और दूसरा व्रत नहीं है. इसकी कथा पढ़ने या सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है.

Thursday 14 April 2016

कुंभ की कथा



इन 4 शहरों में लगता है कुंभ मेला
देश के इन 4 शहरों में कुंभ मेलों का आयोजन किया जाता है- हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन। इन शहरों में प्रत्येक 12 सालों में विशेष ज्योतिषीय योग बनने पर कुंभ मेला लगता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार देवासुर संग्राम के दौरान इन्हीं 4 स्थानों पर अमृत की बूँदे गिरी थीं। इससे जुड़ी कथा इस प्रकार है-

कुंभ की कथा
एक बार देवताओं दानवों ने मिलकर अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन किया। मदरांचल पर्वत को मथनी और वासुकी नाग को रस्सी बनाकर समुद्र को मथा गया। समुद्र मंथन से 14 रत्न निकले। अंत में भगवान धन्वंतरि अमृत का घड़ा लेकर प्रकट हुए। अमृत कुंभ के निकलते ही देवताओं और दैत्यों में उसे पाने के लिए लड़ाई छिड़ गई। ये युद्ध लगातार 12 दिन तक चलता रहा।
इस लड़ाई के दौरान पृथ्वी के 4 स्थानों (प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) पर कलश से अमृत की बूँदें गिरी। लड़ाई शांत करने के लिए भगवान ने मोहिनी रूप धारण कर छल से देवताओं को अमृत पिला दिया। अमृत पीकर देवताओं ने दैत्यों को मार भगाया। काल गणना के आधार पर देवताओं का एक दिन धरती के एक साल के बराबर होता है। इस कारण हर 12 साल में इन चारों जगहों पर महाकुंभ का आयोजन किया जाता है।
कुंभ मेले का इतिहास
विद्वानों का मानना है कि कुंभ मेले की परंपरा तो बहुत पुरानी है, लेकिन उसे व्यवस्थित रूप देने का श्रेय आदि शंकराचार्य को जाता है। जिस तरह उन्होंने चार मुख्य तीर्थों पर चार पीठ स्थापित किए, उसी तरह चार तीर्थ स्थानों पर कुंभ मेले में साधुओं की भागीदारी भी सुनिश्चित की। आज भी कुंभ मेलों में शंकराचार्य मठ से संबद्ध साधु-संत अपने शिष्यों सहित शामिल होते हैं।


महाभारत काल में होता था कुंभ
शैवपुराण की ईश्वर संहिता आगम तंत्र से संबद्ध सांदीपनि मुनि चरित्र स्तोत्र के अनुसार, महर्षि सांदीपनि काशी में रहते थे। एक बार प्रभास क्षेत्र से लौटते हुए वे उज्जैन आए। उस समय यहां कुंभ मेले का समय था। लेकिन उज्जैन में भयंकर अकाल के कारण साधु-संत बहुत परेशान थे। तब महर्षि सांदीपनि ने तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया, जिससे अकाल समाप्त हो गया। भगवान शिव ने महर्षि सांदीपनि से इसी स्थान पर रहकर विद्यार्थियों को शिक्षा देने के लिए कहा। महर्षि सांदीपनि ने ऐसा ही किया। आज भी उज्जैन में महर्षि सांदीपनि का आश्रम स्थित है। मान्यता है कि इसी आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण बलराम ने शिक्षा प्राप्त की थी।
किस योग में कहां आयोजित होता है कुंभ
प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन नासिक में विशेष ज्योतिषीय योगों में कुंभ पर्व का आयोजन किया जाता है। ये ज्योतिषीय योग कौन-कौन से हैं, इसकी जानकारी इस प्रकार है-

इलाहाबाद
यहां सूर्य के मकर और गुरु के वृषभ राशि में होने पर कुंभ मेले का आयोजन होता है-

मकरे दिवानाथे वृषभे बृहस्पतौ।
कुंभयोगो भवेत् तत्र प्रयागेह्यति दुर्लभः।।
माघेवृषगते जीवे मकरे चंद्रभास्करौ।
अमावस्यां तदा योगः कुंभाख्यस्तीर्थनायके।।
अर्थ- सूर्य जब मकर राशि में हो तथा गुरु वृषभ राशि में, तब तीर्थराज प्रयाग में कुंभ पर्व का योग होता है। इस प्रकार माघ का महीना हो, अमावस्या की तिथि हो, गुरु वृष राशि पर हो तथा सूर्य-चंद्र मकर राशि पर हो, तब प्रयागराज में अत्यंत दुर्लभ कुंभ योग होता है।
हरिद्वार
पद्मिनीनायके मेषे कुंभराशिगते गुरौ।
गंगाद्वारे भवेद्योगः कुंभनामा तदोत्तमम्।।
अर्थ- कुंभ राशि के गुरु में जब मेष राशि का सूर्य हो, तब हरिद्वार में कुंभ होता है।


नासिक
सिंहराशिगते सूर्ये सिंहराशौ बृहस्पतौ।
गोदावर्या भवेत्कुंभः पुनरावृत्तिवर्जनः।।
अर्थ- सिंह राशि के गुरु में जब सिंह राशि का सूर्य हो, तब गोदावरी तट (नासिक) में कुंभ पर्व होता है।
उज्जैन
मेषराशि गते सूर्ये, सिंहराश्यां बृहस्पतौ।
उज्जयिन्यां भवेत्कुंभ सर्वसौख्य विवर्धनः।।
मेषराशि गते सूर्ये, सिंहराश्यां बृहस्पतौ।
कुंभयोगसविज्ञेयः भुक्तिमुक्ति प्रदायकः।।
अर्थ- सिहं राशि के गुरु में मेष का सूर्य आने पर उज्जयिनी (उज्जैन) में कुंभ पर्व मनाया जाता है।

कुंभ में स्नान का महत्व
सहस्त्र कार्तिके स्नानं माघे स्नान शतानि च।
वैशाखे नर्मदाकोटिः कुंभस्नानेन तत्फलम्।।
अश्वमेघ सहस्त्राणि वाजवेयशतानि च।
लक्षं प्रदक्षिणा भूम्याः कुंभस्नानेन तत्फलम्।
अर्थ- कुंभ में किए गए एक स्नान का फल कार्तिक मास में किए गए हजार स्नान, माघ मास में किए गए सौ स्नान वैशाख मास में नर्मदा में किए गए करोड़ों स्नानों के बराबर होता है।
हजारों अश्वमेघ, सौ वाजपेय यज्ञों तथा एक लाख बार पृथ्वी की परिक्रमा करने से जो पुण्य मिलता है, वह कुंभ में एक स्नान करने से प्राप्त हो जाता है।
उज्जैन में लगता है सिहंस्थ
उज्जैन में लगने वाले कुंभ मेले को सिंहस्थ के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इस दौरान गुरु सिंह राशि में होता है। सिंहस्थ को दुनिया का सबसे बड़ा मेला भी कहा जाता है। यह मेला एक महीने (इस बार 22 अप्रैल से 21 मई तक) तक चलता है। सिंहस्थ पर्व के दौरान विभिन्न तिथियों पर स्नान करने की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि सिंहस्थ के दौरान पवित्र नदी में स्नान करने से पापों का नाश हो जाता है। उज्जैन में चैत्र मास की पूर्णिमा से सिंहस्थ का प्रारंभ होता है, और पूरे मास में वैशाख पूर्णिमा के अंतिम स्नान तक भिन्न-भिन्न तिथियों में सम्पन्न होती है। उज्जैन में सिंहस्थ के लिए सिंह राशि पर बृहस्पति, मेष में सूर्य, तुला राशि का चंद्र आदि ग्रह-योग जरूरी माने जाते हैं।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. आनन्द शंकर व्यास द्वारा दी जानकारी के अनुसार, सिंहस्थ-2016 के स्नान इस प्रकार होंगे-