Thursday 30 July 2015

गुरु पूर्णिमा



ज्योतिष के अनुसार, जिन लोगों की जन्म कुंडली में बृहस्पति ग्रह (गुरु) की स्थिति शुभ नहीं होती, उन्हें अपने जीवन में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस दोष का उस व्यक्ति की पढ़ाई, नौकरी, दांपत्य जीवन तथा स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है। कुछ साधारण उपाय कर इस दोष के बुरे प्रभावों को कम किया जा सकता है। ये उपाय यदि गुरु पूर्णिमा (इस बार 31 जुलाई) के शुभ योग में किए जाएं तो इनके बहुत ही जल्दी शुभ फल प्राप्त होते हैं। ये उपाय इस प्रकार हैं-

1. औषध स्नान
बृहस्पति ग्रह से प्रभावित व्यक्ति को हल्दी, शक्कर, नमक, शहद, सफेद सरसों, गूलर, मुलैठी पीले फूल पानी में डालकर (बहुत कम मात्रा में) नहाना चाहिए। यह उपाय गुरु पूर्णिमा या किसी अन्य गुरुवार से शुरू कर प्रतिदिन करना चाहिए।

2. पुखराज दान
जिस व्यक्ति की कुंडली में गुरु ग्रह अशुभ स्थान पर स्थित हो, उसे इस दोष के निवारण के लिए गुरु पूर्णिमा पर या गुरु पुष्य योग में ब्राह्मण को कांसा, शक्कर, हल्दी, सफेद सरसों, पीले कपड़े, घी, चने की दाल, पीले फूल, फल, सोना, बृहस्पति यंत्र सहित पुखराज रत्न दान करना चाहिए।
3. गुरु पूर्णिमा के दिन सोने या चांदी के पतरे पर बृहस्पति यंत्र बनवाकर उसे पूजन स्थान पर रखना चाहिए तथा रोज उस यंत्र की विधि-विधान से पूजा करना चाहिए।
4. गुरु पूर्णिमा पर बृहस्पति यंत्र को अष्टगंध से भोजपत्र पर लिखकर, उसकी पूजा करने के बाद गले या दाहिनी भुजा पर धारण करना चाहिए। चांदी की अंगूठी पर बृहस्पति यंत्र बनवाकर उसे तर्जनी (अंगूठे के पास वाली) उंगली में पहनने से भी गुरु ग्रह से संबंधित दोषों का निवारण होता है।
5. गुरु पूर्णिमा से शुरू कर नीचे लिखे मंत्रों में से किसी एक का रोज जाप करना चाहिए-
बृहस्पति एकाक्षरी बीज मंत्र- ऊं बृं बृहस्पतये नम:
बृहस्पति तांत्रिक मंत्र- ऊं ग्रां ग्रीं ग्रौं : गुरवे नम:।।
बृहस्पति गायत्री मंत्र- ऊं आंगिरसाय विद्महे दिव्यदेहाय धीमहि तन्नो जीव:प्रचोदयात्।।
इन मंत्रों का जाप उत्तर दिशा की ओर मुख करके किया जाए तो शुभ रहता है।
6. गुरु पूर्णिमा से शुरू कर 27 गुरुवार तक किसी मंदिर में गाय के घी का दीपक जलाने से शुभ फल मिलते हैं।
7. गुरु पूर्णिमा पर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद प्रतिदिन श्रीविष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
8. गुरु पूर्णिमा पर अपने गुरु अथवा किसी साधु को पीले वस्त्र उपहार में देना चाहिए। ये किसी सौभाग्यवती स्त्री को भी दिए जा सकते हैं।
9. गुरु पूर्णिमा या गुरु पुष्य योग से शुरू कर 7 गुरुवार तक घोड़े को चने की दाल खिलाएं।
10. गुरु पूर्णिमा से शुरू कर हर गुरुवार को चमेली के 9 फूल बहते हुए जल में प्रवाहित करना चाहिए।
11. गुरु पूर्णिमा से शुरू कर प्रत्येक गुरुवार के दिन देवगुरु बृहस्पति को पीले कनेर के फूल अर्पण करना चाहिए।

Tuesday 28 July 2015

विजया पार्वती व्रत

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए विजया (जया) पार्वती व्रत किया जाता है। इसका वर्णन भविष्योत्तर पुराण में मिलता है। इस बार यह व्रत 29 जुलाई, बुधवार को है। इस व्रत के बारे में भगवान विष्णु ने लक्ष्मी को बताया था। धर्म ग्रंथों के अनुसार, यह व्रत महिलाओं द्वारा किया जाता है। इस व्रत को करने से स्त्रियां सौभाग्यवती होती हैं और उन्हें वैधव्य (विधवा) का दु:ख नहीं भोगना पड़ता। इस व्रत की विधि इस प्रकार है-
व्रत विधि
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को सुबह जल्दी उठकर जरूरी काम निपटा लें। इसके बाद नहाकर हाथ में जल लेकर जया पार्वती व्रत का संकल्प इस प्रकार लें-
मैं आनन्द के साथ स्वादहीन अनाज से एकभुक्त (एक समय भोजन) व्रत करूंगी। मेरे पापों को नष्ट करना व सौभाग्य का वर देना। इसके बाद अपनी शक्ति के अनुसार सोने, चांदी या मिट्टी से बने बैल पर बैठे शिव-पार्वती की मूर्ति की स्थापना करें। स्थापना किसी मंदिर या ब्राह्मण के घर पर वेदमंत्रों से करें या कराएं। इसके बाद इस प्रकार पूजा करें-
सबसे पहले कुमकुम, कस्तूरी, अष्टगंध, शतपत्र (पूजा में उपयोग आने वाले पत्ते) व फूल चढ़ाएं। इसके बाद नारियल, दाख, अनार व अन्य ऋतुफल अर्पित करें। विधि-विधान से षोडशोपचार पूजन करें। माता पार्वती का स्मरण करें व उनकी स्तुति करें, जिससे वे प्रसन्न हों।
अब निवेदन करें कि हे प्रथमे। हे देवी। हे शंकर की प्यारी। मुझ पर कृपा कर यह पूजन ग्रहण करें व मुझे सौभाग्य का वर दें। इस प्रकार निवेदन करने के बाद इस व्रत से संबंधित कथा ब्राह्मण से सुनें। कथा समाप्ति के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं। बाद में स्वयं नमक रहित भोजन करें।
इस प्रकार विजया पार्वती व्रत विधि-विधान से करने से माता पार्वती प्रसन्न होती हैं और हर मनोकामना पूरी करती हैं
 विजया पार्वती व्रत की कथा भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी को सुनाई थी, जो इस प्रकार है-
किसी समय कौडिन्य नगर में वामन नाम का एक योग्य ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम सत्या था। उनके घर में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी, लेकिन उनके यहां संतान नहीं होने से वे बहुत दु:खी रहा करते थे। एक दिन नारदजी उनके यहां आएं। उन्होंने नारदजी की सेवा की और अपनी समस्या का समाधान पूछा। तब नारदजी ने उन्हें बताया कि तुम्हारे नगर के बाहर जो वन है, उसके दक्षिणी भाग में बिल्व वृक्ष के नीचे भगवान शंकर माता पार्वती के साथ लिंगरूप में विराजित हैं। उनकी पूजा करने से तुम्हारी मनोकामना अवश्य पूरी होगी।
तब ब्राह्मण दंपत्ति ने ढूंढकर उस शिवलिंग की विधि-विधान से पूजा की। इस प्रकार पूजा करने का क्रम चलता रहा और पांच वर्ष बीत गए। एक दिन जब वह ब्राह्मण पूजन के लिए फूल तोड़ रहा था तभी उसे सांप ने काट लिया और वह वहीं जंगल में ही गिर गया। ब्राह्मण जब काफी देर तक घर नहीं गया तो उसकी पत्नी उसे ढूंढने आई। पति को इस हालत में देख वह रोने लगी और वनदेवता व माता पार्वती को स्मरण किया।
ब्राह्मणी की पुकार सुनकर वनदेवता और मां पार्वती चली आईं और ब्राह्मण के मुख में अमृत डाल दिया, जिससे ब्राह्मण उठ बैठा। तब ब्राह्मण दंपत्ति ने माता पार्वती का पूजन किया। माता पार्वती ने उनसे वर मांगने के लिए कहा। तब दोनों ने संतान प्राप्ति के लिए कहा। माता पार्वती ने उन्हें विजया पार्वती व्रत करने के लिए कहा। ब्राह्मण दंपत्ति ने विधि पूर्वक यह व्रत किया, जिससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई।

Monday 27 July 2015

देवशयनी एकादशी



आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इस दिन से भगवान विष्णु चार महीने तक पाताल में शयन करते हैं। ये चार महीने चातुर्मास कहलाते हैं। चातुर्मास को भगवान की भक्ति करने का समय बताया गया है। इस दौरान कोई मांगलिक कार्य भी नहीं किए जाते। इस बार देवशयनी एकादशी 27 जुलाई, सोमवार को है।
 
धर्म शास्त्रों के अनुसार, भगवान विष्णु ने वामन अवतार में दैत्यराज बलि से तीन पग भूमि दान के रूप में मांगी थी। भगवान ने पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढक लिया। अगले पग में सम्पूर्ण स्वर्ग लोक ले लिया। तीसरे पग में बलि ने अपने आप को समर्पित करते हुए सिर पर पग रखने को कहा। इस प्रकार के दान से प्रसन्न होकर भगवान ने बलि को पाताल लोक का राजा बना दिया और कहा वर मांगो।
बलि ने वर मांगते हुए कहा कि भगवान आप मेरे महल में निवास करें। तब भगवान ने बलि की भक्ति को देखते हुए चार मास तक उसके महल में रहने का वरदान दिया। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी से देवप्रबोधिनी एकादशी तक पाताल में बलि के महल में निवास करते हैं।
इस विधि से करें देवशयनी एकादशी का व्रत
देवशयनी एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठें। पहले घर की साफ-सफाई करें, उसके बाद भी स्नान आदि कर शुद्ध हो जाएं। घर के पूजन स्थल अथवा किसी भी पवित्र स्थान पर भगवान विष्णु की सोने, चांदी, तांबे अथवा पीतल की मूर्ति स्थापित करें। इसके उसका षोडशोपचार (16 सामग्रियों से) पूजन करें। भगवान विष्णु को पीतांबर (पीला कपड़ा) अर्पित करें।

व्रत की कथा सुनें। आरती कर प्रसाद वितरण करें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं तथा दक्षिणा देकर विदा करें। अंत में सफेद चादर से ढंके गद्दे-तकिए वाले पलंग पर श्रीविष्णु को शयन कराएं तथा स्वयं धरती पर सोएं। धर्म शास्त्रों के अनुसार, यदि व्रती (व्रत रखने वाला) चातुर्मास नियमों का पूर्ण रूप से पालन करे तो उसे देवशयनी एकादशी व्रत का संपूर्ण फल मिलता है।
ये है देवशयनी एकादशी व्रत की कथा
एक बार देवर्षि नारद ने ब्रह्माजी से देवशयनी एकादशी का महत्व जानना चाहा। तब ब्रह्माजी ने उन्हें बताया कि सतयुग में मांधाता नामक एक चक्रवर्ती राजा थे। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। एक बार उनके राज्य में भयंकर अकाल पड़ा। इस अकाल से चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। प्रजा ने राजा के पास जाकर अपनी व्यथा सुनाई। राजा मांधाता यह देखकर बहुत दु:खी हुए। इस समस्या का निदान जानने के उद्देश्य से राजा सेना को लेकर जंगल की ओर चल दिए।
वहां वे एक दिन ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचे। अंगिरा ऋषि ने उनके जंगल में घूमने का कारण पूछा तो राजा ने अपनी समस्या बताई। तब महर्षि अंगिरा ने कहा कि सब युगों से उत्तम यह सतयुग है। इसमें छोटे से पाप का भी बड़ा भयंकर दंड मिलता है। ब्राह्मण के अतिरिक्त किसी अन्य जाति को तप करने का अधिकार नहीं है, जबकि आपके राज्य में एक अन्य जाति का व्यक्ति तप कर रहा है। इसीलिए आपके राज्य में वर्षा नहीं हो रही है। जब तक उसका अंत नहीं होगा, तब तक यह अकाल समाप्त नहीं होगा।
किंतु राजा का हृदय एक निरपराध तपस्वी को मारने को तैयार नहीं हुआ। तब महर्षि अंगिरा ने राजा को आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने के लिए कहा। राजा के साथ ही सभी नागरिकों ने भी देवशयनी एकादशी का व्रत विधिपूर्वक किया। व्रत के प्रभाव से उनके राज्य में मूसलाधार वर्षा हुई और पूरा राज्य धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया।