सांप एक
ऐसा जीव
है, जो
हमेशा से
लोगों के
आकर्षण का
केंद्र बना
हुआ है।
लोग इससे
डरते भी
हैं। अनेक
ग्रंथों में
भी नागों
से संबंधित
कथाएं पढ़ने
को मिलती
है। महाभारत
के आदि
पर्व में
नागों की
उत्पत्ति और
राजा जनमेजय
द्वारा किए
गए नागदाह
यज्ञ से
संबंधित कथा
का वर्णन
है। यह
कथा बहुत
ही रोचक
है। आज
हम आपको
नाग वंश
की उत्पत्ति
से संबंधित
वही कथा
बता रहे
हैं-
ऐसे
हुई
नाग
वंश
की
उत्पत्ति
महाभारत के
अनुसार, महर्षि
कश्यप की
तेरह पत्नियां
थीं। इनमें
से कद्रू
भी एक
थी। कद्रू
ने अपने
पति महर्षि
कश्यप की
बहुत सेवा
की, जिससे
प्रसन्न होकर
महर्षि ने
कद्रू को
वरदाने मांगने
के लिए
कहा। कद्रू
ने कहा
कि एक
हजार तेजस्वी
नाग मेरे
पुत्र हों।
महर्षि कश्यप
ने वरदान
दे दिया,
उसी के
फलस्वरूप नाग
वंश की
उत्पत्ति हुई।
महर्षि कश्यप
की एक
अन्य पत्नी
का नाम
विनता था।
पक्षीराज गरुड़
विनता का
ही पुत्र
है। एक
बार कद्रू
और विनता
ने एक
सफेद घोड़ा
देखा। उसे
देखकर कद्रू
ने कहा
कि इस
घोड़े की
पूंछ काली
है और
विनता ने
कहा कि
सफेद। इस
बात पर
दोनों में
शर्त लग
गई। तब
कद्रू ने
अपने नाग
पुत्रों से
कहा कि
वे अपना
आकार छोटा
कर घोड़े
की पूंछ
से लिपट
जाएं, जिससे
उसकी पूंछ
काली नजर
आए और
वह शर्त
जीत जाए।
कुछ सर्पों ने ऐसा करने से मना कर दिया। तब कद्रू ने अपने पुत्रों को श्राप दे दिया कि तुम राजा जनमेजय के यज्ञ में भस्म हो जाओगो। श्राप की बात सुनकर सांप अपनी माता के कहे अनुसार उस सफेद घोड़े की पूंछ से लिपट गए जिससे उस घोड़े की पूंछ काली दिखाई देने लगी। शर्त हारने के कारण विनता कद्रू की दासी बन गई।
कुछ सर्पों ने ऐसा करने से मना कर दिया। तब कद्रू ने अपने पुत्रों को श्राप दे दिया कि तुम राजा जनमेजय के यज्ञ में भस्म हो जाओगो। श्राप की बात सुनकर सांप अपनी माता के कहे अनुसार उस सफेद घोड़े की पूंछ से लिपट गए जिससे उस घोड़े की पूंछ काली दिखाई देने लगी। शर्त हारने के कारण विनता कद्रू की दासी बन गई।
इसलिए हो गए नागों की जीभ के दो टुकड़े
जब गरुड़
को पता
चला कि
उनकी मां
दासी बन
गई है
तो उन्होंने
कद्रू और
उनके सर्प
पुत्रों से
पूछा कि
तुम्हें मैं
ऐसी कौन
सी वस्तु
लाकर दूं
जिससे कि
मेरी माता
तुम्हारे दासत्व
से मुक्त
हो जाए।
तब सर्पों
ने कहा
कि तुम
हमें स्वर्ग
से अमृत
लाकर दोगे
तो तुम्हारी
माता दासत्व
से मुक्त
हो जाएगी।
अपने पराक्रम
से गरुड़
स्वर्ग से
अमृत कलश
ले आए
और उसे
कुशा (एक
प्रकार की
धारदार घास)
पर रख
दिया। अमृत
पीने से
पहले जब
सर्प स्नान
करने गए
तभी देवराज
इंद्र अमृत
कलश लेकर
उठाकर पुन:
स्वर्ग ले
गए। यह
देखकर सांपों
ने उस
घास को
चाटना शुरू
कर दिया
जिस पर
अमृत कलश
रखा था,
उन्हें लगा
कि इस
स्थान पर
थोड़ा अमृत
का अंश
अवश्य होगा।
ऐसा करने
से ही
उनकी जीभ
के दो
टुकड़े हो
गए।
शेषनाग ने की घोर तपस्या
कद्रू के
पुत्रों में
शेषनाग भी
एक थे।
उन्होंने कद्रू
और अपने
सर्प भाइयों
को छोड़कर
कठिन तपस्या
की। उनकी
तपस्या से
प्रसन्न होकर
ब्रह्माजी उन्हें
वरदान देने
आए। तब
शेषनाग ने
कहा कि
मेरी बुद्धि
धर्म, तपस्या
और शांति
में बनी
रहे। ब्रह्माजी
ने शेषनाग
की ऐसी
भक्ति देखकर
कहा कि
ये सारी
पृथ्वी पर्वत,
वन, सागर
और नगर
हिलती-डुलती
रहती है,
तुम इसे
इस प्रकार
धारण करो
कि ये
स्थिर हो
जाए। ब्रह्माजी
के ऐसे
कहने पर
शेषनाग पृथ्वी
के भीतर
घुस गए
और पृथ्वी
को अपने
सिर पर
धारण कर
लिया।
नागराज वासुकि
को जब
माता कद्रू
के श्राप
के बारे
में पता
लगा तो
वे बहुत
चिंतित हो
गए। तब
उन्हें एलापत्र
नामक नाग
ने बताया
कि इस
सर्प यज्ञ
में केवल
दुष्ट सर्पों
का ही
नाश होगा
और जरत्कारू
नामक ऋषि
का पुत्र
आस्तिक इस
सर्प यज्ञ
को संपूर्ण
होने से
रोक देगा।
जरत्कारू ऋषि
से ही
सर्पों की
बहन (मनसादेवी)
का विवाह
होगा। यह
सुनकर वासुकि
को संतोष
हुआ।
जनमेजय ने क्यों किया नागदाह यज्ञ?
समय आने
पर नागराज
वासुकि ने
अपनी बहन
का विवाह
ऋषि जरत्कारू
से करवा
दिया। कुछ
समय बाद
मनसादेवी को
एक पुत्र
हुआ, इसका
नाम आस्तिक
रखा गया।
यह बालक
नागराज वासुकि
के घर
पर पला।
च्यवन ऋषि
ने इस
बालक को
वेदों का
ज्ञान दिया।
उस समय
पृथ्वी पर
राजा जनमेजय
का शासन
था। जब
राजा जनमेजय
को यह
पता चला
कि उनके
पिता परीक्षित
की मृत्यु
तक्षक नाग
द्वारा काटने
से हुई
है तो
वे बहुत
क्रोधित हुए
और उन्होंने
नागदाह यज्ञ
करने का
निर्णय लिया।
जब जनमेजय ने नागदाह यज्ञ प्रारंभ किया तो उसमें बड़े-छोटे, वृद्ध, युवा सर्प आ-आकर गिरने लगे। ऋषि मुनि नाम ले लेकर आहुति देते और भयानक सर्प आकर अग्नि कुंड में गिर जाते। यज्ञ के डर से तक्षक देवराज इंद्र के यहां जाकर छिप गया।
जब जनमेजय ने नागदाह यज्ञ प्रारंभ किया तो उसमें बड़े-छोटे, वृद्ध, युवा सर्प आ-आकर गिरने लगे। ऋषि मुनि नाम ले लेकर आहुति देते और भयानक सर्प आकर अग्नि कुंड में गिर जाते। यज्ञ के डर से तक्षक देवराज इंद्र के यहां जाकर छिप गया।