Monday 28 December 2015

श्रीहनुमानजी की मनोकामना पूर्ति पूजा

ज्योतिष के अंतर्गत कई चमत्कारी उपाय हैं, जिनके माध्यम से आप सपने में भगवान की कृपा प्राप्त कर सकते हैं। ऐसा ही एक उपाय यह भी है जिसमें हनुमानजी सपने में आकर साधक को मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद देते हैं। यह अनुष्ठान 81 दिन का है। यह उपाय गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित हनुमान अंक में बताया गया है। इस उपाय को हनुमान अष्टमी (इस बार 2 जनवरी, शनिवार) या किसी मंगलवार से शुरू करें, तो विशेष फल प्राप्त होता है। ये उपाय इस प्रकार करें-

सावधानी

इस उपाय को करते समय ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य है। साथ ही क्षौर कर्म जैसे- नाखून काटना, बाल या दाड़ी कटवाना की भी मनाही है। शराब व मांस का सेवन भी इस उपाय के दौरान नहीं कर सकते।

उपाय

हनुमान अष्टमी या महीने के किसी भी मंगलवार के दिन सुबह उठकर स्नान आदि करने के बाद साफ कपड़े पहनें। अब एक लोटा पानी लेकर हनुमानजी के मंदिर में जाएं और उस जल से हनुमानजी की मूर्ति को स्नान कराएं। पहले दिन एक दाना साबूत उड़द का हनुमान के सिर पर रखकर 11 परिक्रमा करें और मन ही मन अपनी मनोकामना हनुमानजी के सामने कहें और वह उड़द का दाना लेकर घर लौट आएं तथा उसे अलग रख दें। दूसरे दिन से एक-एक उड़द का दाना रोज बढ़ाते रहें व यही प्रक्रिया करते रहें।
41 दिन 41 दाने रखकर बाद में 42 वें दिन से एक-एक दाना कम करते रहें। जैसे 42 दिन 40, 43 वें दिन 39 और 81 वें दिन 1 दाना। 81 दिन का यह अनुष्ठान पूर्ण होने पर उसी दिन रात में श्रीहनुमानजी स्वप्न में दर्शन देकर साधक को मनोकामना पूर्ति का आशीर्वाद देते हैं। ऐसा गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित हनुमान अंक पुस्तक में लिखा है। इस पूरी विधि के दौरान जितने भी उड़द के दाने आपने हनुमानजी को चढ़ाएं हो उन्हें नदी में प्रवाहित कर दें।

हनुमानजी को चढ़ाएं पान

हनुमान अष्टमी को हनुमानजी को एक विशेष पान चढ़ाएं। इस पान में केवल कत्था, गुलकंद, सौंफ, खोपरे का बुरा और सुमन कतरी डलवाएं। पान बनवाते समय इस बात का ध्यान रखें कि उसमें चूना एवं सुपारी नही हो। इस पान में तंबाकू नहीं होनी चाहिए। हनुमानजी का विधि-विधान से पूजन करने के बाद यह पान हनुमानजी को यह बोलकर अर्पण करें- हे हनुमानजी। आपको मैं यह मीठा रस भरा पान अर्पण कर रहा हूं। आप भी मेरा जीवन मीठास से भर दीजिए। हनुमानजी की कृपा से कुछ ही दिनों में आपकी हर समस्या दूर हो जाएगी।

इस उपाय से होगी मनोकामना पूरी

हनुमान अष्टमी को तेल, बेसन और उड़द के आटे से बनाई हुई हनुमानजी की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा करके तेल और घी का दीपक जलाएं तथा विधिवत पूजन कर पुआ, मिठाई आदि का भोग लगाएं। इसके बाद 27 पान के पत्ते तथा सुपारी आदि मुख शुद्धि की चीजें लेकर इनका बीड़ा बनाकर हनुमानजी को अर्पित करें। इसके बाद इस मंत्र का जाप करें-
मंत्र- नमो भगवते आंजनेयाय महाबलाय स्वाहा।

फिर आरती, स्तुति करके अपने इच्छा बताएं और प्रार्थना करके इस मूर्ति को विसर्जित कर दें। इसके बाद किसी योग्य ब्राह्मण को भोजन कराकर व दान देकर सम्मान विदा करें।
यह उपाय करने से शीघ्र ही आपकी मनोकामना पूरी होगी।

ऐसे करें हनुमान यंत्र की पूजा

हनुमान अष्टमी को सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद किसी शांत एवं एकांत कमरे में पूर्व दिशा की ओर मुख करके लाल आसन पर बैठें। स्वयं लाल या पीली धोती पहनें। अपने सामने चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर हनुमानजी की मूर्ति स्थापित करें।
चित्र के सामने तांबे की प्लेट में लाल रंग के फूल का आसन देकर श्रीहनुमान यंत्र को स्थापित करें। यंत्र पर सिंदूर से टीका करें और लाल फूल चढ़ाएं। मूर्ति तथा यंत्र पर सिंदूर लगाने के बाद धूप, दीप, चावल, फूल व प्रसाद आदि से पूजन करें। सरसों या तिल के तेल का दीपक एवं धूप जलाएं-

ध्यान- दोनों हाथ जोड़कर हनुमानजी का ध्यान करें-
ऊं रामभक्ताय नम:। ऊं महातेजसे नम:।
ऊं कपिराजाय नम:। ऊं महाबलाय नम:।
ऊं दोणाद्रिहराय नम:। ऊं सीताशोक हराय नम:।
ऊं दक्षिणाशाभास्कराय नम:। ऊं सर्व विघ्न हराय नम:।


आह्वान- हाथ जोड़कर हनुमानजी का आह्वान करें-
हेमकूटगिरिप्रान्त जनानां गिरिसामुगाम्।
पम्पावाहथाम्यस्यां नद्यां ह्रद्यां प्रत्यनत:।।


विनियोग- दाएं हाथ में आचमनी में या चम्मच में जल भरकर यह विनियोग करें-
अस्य श्रीहनुमन्महामन्त्रराजस्य श्रीरामचंद्र ऋषि: जगतीच्छन्द:, श्रीहनुमान, देवता, ह् सौं बीजं, हस्फ्रें शक्ति: श्रीहनुमत् प्रसादसिद्धये जपे विनियोग:।

अब जल छोड़ दें। इस प्रकार श्रीहनुमान यंत्र की पूजा से सभी मनोकामना पूरी होती हैं।

करें इस हनुमान मंत्र का जाप

यदि आप पर कोई संकट है, तो हनुमान अष्टमी को नीचे लिखे हनुमान मंत्र का विधि-विधान से जाप करें।
मंत्र
ऊं नमो हनुमते रूद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा

जाप विधि

सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद साफ वस्त्र पहनें। इसके बाद अपने माता-पिता, गुरु, इष्ट व कुल देवता को नमन कर कुश का आसन ग्रहण करें। पारद हनुमान प्रतिमा के सामने इस मंत्र का जाप करेंगे तो विशेष फल मिलता है। जप के लिए लाल हकीक की माला का प्रयोग करें।

हनुमानजी की रोचक बातें

शिवपुराण के अनुसार, त्रेतायुग में भगवान श्रीराम की सहायता करने और दुष्टों का नाश करने के लिए भगवान शिव ने वानर जाति में हनुमान के रूप में अवतार लिया था। हनुमान को भगवान शिव का श्रेष्ठ अवतार कहा जाता है। जब भी श्रीराम-लक्ष्मण पर कोई संकट आया, हनुमानजी ने उसे अपनी बुद्धि व पराक्रम से दूर कर दिया। वाल्मीकि रामायण के उत्तर कांड में स्वयं भगवान श्रीराम ने अगस्त्य मुनि से कहा है कि हनुमान के पराक्रम से ही उन्होंने रावण पर विजय प्राप्त की है। हनुमान अष्टमी (2 जनवरी, शनिवार) के अवसर पर हम आपको हनुमानजी द्वारा किए गए कुछ ऐसे ही कामों के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें करना किसी और के वश में नहीं था-

अनेक राक्षसों का वध

युद्ध में हनुमानजी ने अनेक पराक्रमी राक्षसों का वध किया, इनमें धूम्राक्ष, अकंपन, देवांतक, त्रिशिरा, निकुंभ आदि प्रमुख थे। हनुमानजी और रावण में भी भयंकर युद्ध हुआ था। रामायण के अनुसार हनुमानजी का थप्पड़ खाकर रावण उसी तरह कांप उठा था, जैसे भूकंप आने पर पर्वत हिलने लगते हैं। हनुमानजी के इस पराक्रम को देखकर वहां उपस्थित सभी वानरों में हर्ष छा गया था।

समुद्र लांघना

माता सीता की खोज करते समय जब हनुमान, अंगद, जामवंत आदि वीर समुद्र तट पर पहुंचे तो 100 योजन विशाल समुद्र को देखकर उनका उत्साह कम हो गया। तब अंगद ने वहां उपस्थित सभी पराक्रमी वानरों से उनके छलांग लगाने की क्षमता के बारे में पूछा। तब किसी वानर ने कहा कि वह 30 योजन तक छलांग लगा सकता है, तो किसी ने कहा कि वह 50 योजन तक छलांग लगा सकता है।ऋक्षराज जामवंत ने कहा कि वे 90 योजन तक छलांग लगा सकते हैं। सभी की बात सुनकर अंगद ने कहा कि- मैं 100 योजन तक छलांग लगाकर समुद्र पार तो कर लूंग, लेकिन लौट पाऊंगा कि नहीं, इसमें संशय है। तब जामवंत ने हनुमानजी को उनके बल व पराक्रम का स्मरण करवाया और हनुमानजी ने 100 योजन विशाल समुद्र को एक छलांग में ही पार कर लिया।
 

माता सीता की खोज

समुद्र लांघने के बाद हनुमान जब लंका पहुंचे तो लंका के द्वार पर ही लंकिनी नामक राक्षसी से उन्हें रोक लिया। हनुमानजी ने उसे परास्त कर लंका में प्रवेश किया। हनुमानजी ने माता सीता को बहुत खोजा, लेकिन वह कहीं भी दिखाई नहीं दी। फिर भी हनुमानजी के उत्साह में कोई कमी नहीं आई।मां सीता के न मिलने पर हनुमानजी ने सोचा कहीं रावण ने उनका वध तो नहीं कर दिया, यह सोचकर उन्हें बहुत दु:ख हुआ। लेकिन इसके बाद भी वे लंका के अन्य स्थानों पर माता सीता की खोज करने लगे। अशोक वाटिका में जब हनुमानजी ने माता सीता को देखा तो वे अति प्रसन्न हुए। इस प्रकार हनुमानजी ने यह कठिन काम भी बहुत ही सहजता से कर दिया।
 

अक्षयकुमार का वध व लंका दहन

माता सीता की खोज करने के बाद हनुमानजी ने उन्हें भगवान श्रीराम का संदेश सुनाया। इसके बाद हनुमानजी ने अशोक वाटिका को तहस-नहस कर दिया। ऐसा हनुमानजी ने इसलिए किया क्योंकि वे शत्रु की शक्ति का अंदाजा लगा सकें। जब रावण के सैनिक हनुमानजी को पकड़ने आए तो उन्होंने उनका वध कर दिया।तब रावण ने अपने पराक्रमी पुत्र अक्षयकुमार को भेजा, हनुमानजी ने उसको भी मार दिया। हनुमानजी ने अपना पराक्रम दिखाते हुए लंका में आग लगा दी। पराक्रमी राक्षसों से भरी लंका में जाकर माता सीता को खोज करना व राक्षसों का वध कर लंका को जलाने का साहस हनुमानजी ने बड़ी ही सहजता से कर दिया।
 

विभीषण को अपने पक्ष में करना

श्रीरामचरित मानस के अनुसार, जब हनुमानजी लंका में माता सीता की खोज कर रहे थे, तभी उनकी मुलाकात विभीषण से हुई। रामभक्त हनुमान को देखकर विभीषण बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने पूछा कि- क्या राक्षस जाति का होने के बाद भी श्रीराम मुझे अपनी शरण में लेंगे। तब हनुमानजी ने कहा कि- भगवान श्रीराम अपने सभी सेवकों से प्रेम करते हैं। जब विभीषण रावण को छोड़कर श्रीराम की शरण में आए तो सुग्रीव, जामवंत आदि ने कहा कि ये रावण का भाई है। इसलिए इस पर भरोसा नहीं करना चाहिए। उस स्थिति में हनुमानजी ने ही विभीषण का समर्थन किया था। अंत में, विभीषण के परामर्श से ही भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया।
 

राम-लक्ष्मण के लिए पहाड़ लेकर आना

वाल्मीकि रामायण के अनुसार, युद्ध के दौरान रावण के पुत्र इंद्रजीत ने ब्रह्मास्त्र चलाकर भगवान श्रीराम व लक्ष्मण को बेहोश कर दिया। तब ऋक्षराज जामवंत ने हनुमानजी से कहा कि तुम शीघ्र ही हिमालय पर्वत जाओ, वहां तुम्हें ऋषभ व कैलाश शिखर दिखाई देंगे। उन दोनों के बीच में एक औषधियों का पर्वत है, तुम उसे ले आओ। जामवंतजी के कहने पर हनुमानजी तुरंत उस पर्वत को लेने उड़ गए। अपनी बुद्धि और पराक्रम के बल पर हनुमान औषधियों का वह पर्वत समय रहते उठा आए। उस पर्वत की औषधियों की सुगंध से ही राम-लक्ष्मण व करोड़ों घायल वानर पुन: स्वस्थ हो गए।
 

हनुमान अष्टमी का पर्व

हनुमान के उड़ते ही जल गया अर्जुन का रथ, क्यों हुआ ऐसा?
पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हनुमान अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 2 जनवरी, शनिवार को है। इस अवसर पर हम आपको बता रहे हैं हनुमानजी से जुड़ी कुछ रोचक बातें। महाभारत के अनुसार, युद्ध के दौरान अर्जुन के रथ पर स्वयं हनुमानजी विराजित थे। युद्ध समाप्त होने के बाद क्या हुआ और क्यों हनुमानजी अर्जुन के रथ पर विराजित थे। ये पूरा प्रसंग इस प्रकार है-

इसलिए जला अर्जुन का रथ

महाभारत के अनुसार, जब कौरव सेना का नाश हो गया तो दुर्योधन भाग कर एक तालाब में छिप गया। पांडवों को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने दुर्योधन को युद्ध के लिए ललकारा। दुर्योधन तालाब से बाहर निकला और भीम ने उसे पराजित कर दिया। दुर्योधन को मरणासन्न अवस्था में छोड़कर पांडव अपने-अपने रथों पर कौरवों के शिविर में आए। तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन से पहले रथ से उतरने को कहा, बाद में वे स्वयं उतरे।
श्रीकृष्ण के उतरते ही अर्जुन के रथ पर बैठे हनुमानजी भी उड़ गए। तभी देखते ही देखते अर्जुन का रथ जल कर राख हो गया। यह देख अर्जुन ने श्रीकृष्ण से इसका कारण पूछा? तब श्रीकृष्ण ने बताया कि ये रथ तो दिव्यास्त्रों के वार से पहले ही जल चुका था, सिर्फ मेरे बैठे रहने के कारण ही अब तक यह भस्म नहीं हुआ था। जब तुम्हारा काम पूर्ण हो गया, तभी मैंने इस रथ को छोड़ा। इसलिए यह अभी भस्म हुआ है।
 

द्रौपदी ने कहा था भीम को कमल लाने के लिए

वनवास के दौरान पांडव जब बदरिकाश्रम में रह रहे थे, तभी एक दिन वहां उड़ते हुए एक सहस्त्रदल कमल आ गया। उसकी गंध बहुत ही मनमोहक थी। उस कमल को द्रौपदी ने देख लिया। द्रौपदी ने उसे उठा लिया और भीम से कहा- यह कमल बहुत ही सुंदर है। मैं यह कमल धर्मराज युधिष्ठिर को भेंट करूंगी। अगर आप मुझसे प्रेम करते हैं तो ऐसे बहुत से कमल मेरे लिए लेकर आइए। द्रौपदी के ऐसा कहने पर भीम उस दिशा की ओर चल दिए, जिधर से वह कमल उड़ कर आया था। भीम के चलने से बादलों के समान भीषण आवाज आती थी, जिससे घबराकर उस स्थान पर रहने वाले पशु-पक्षी अपना आश्रय छोड़कर भागने लगे।
 

गंधमादन पर्वत पर रहते थे हनुमानजी

कमल पुष्प की खोज में चलते-चलते भीम एक केले के बगीचे में पहुंच गए। यह बगीचा गंधमादन पर्वत की चोटी पर कई योजन लंबा-चौड़ा था। भीम नि:संकोच उस बगीचे में घुस गए। इस बगीचे में भगवान श्रीहनुमान रहते थे। उन्हें अपने भाई भीमसेन के वहां आने का पता लग गया। (धर्म ग्रंथों के अनुसार, हनुमानजी पवन देवता के पुत्र हैं और भीम भी, इसलिए ये दोनों भाई हैं।) हनुमानजी ने सोचा कि यह मार्ग भीम के लिए उचित नहीं है। यह सोचकर उनकी रक्षा करने के विचार से वे केले के बगीचे में से होकर जाने वाले संकरे रास्ते को रोककर लेट गए।
 

भीम को रोकना चाहते थे हनुमान

भीम को बगीचे के संकरे रास्ते पर लेटे हुए वानरराज हनुमान दिखाई दिए। उनके होंठ पतले थे, जीभ और मुंह लाल थे, कानों का रंग भी लाल-लाल था, भौंहें चंचल थीं तथा खुले हुए मुख में सफेद, नुकीले और तीखे दांत और दाढ़ें दिखती थीं। बगीचे में इस प्रकार एक वानर को लेटे हुए देखकर भीम उनके पास पहुंचे और जोर से गर्जना की। हनुमानजी ने अपनी आंखें खोलकर उपेक्षापूर्वक भीम की ओर देखा और कहा- तुम कौन हो और यहां क्या कर रहे हो? मैं रोगी हूं, यहां आनंद से सो रहा था, तुमने मुझे क्यों जगा दिया? यहां से आगे यह पर्वत अगम्य है, इस पर कोई नहीं चढ़ सकता। अत: तुम यहां से चले जाओ।
 

भीम ने ऐसे दिया हनुमानजी को अपना परिचय

हनुमानजी की बात सुनकर भीम बोले- वानरराज। आप कौन हैं और यहां क्या कर रहे हैं? मैं तो चंद्रवंश के अंतर्गत कुरुवंश में उत्पन्न हुआ हूं। मैंने माता कुंती के गर्भ से जन्म लिया है और मैं महाराज पाण्डु का पुत्र हूं। लोग मुझे वायुपुत्र भी कहते हैं। मेरा नाम भीम है।
भीम की बात सुनकर हनुमानजी बोले- मैं तो बंदर हूं, तुम जो इस रास्ते से जाना चाहते हो तो मैं तुम्हें इधर से नहीं जाने दूंगा। अच्छा तो यही हो कि तुम यहां से लौट जाओ, नहीं तो मारे जाओगे।
यह सुनकर भीम ने कहा - मैं मरुं या बचूं, तुमसे तो इस विषय में नहीं पूछ रहा हूं। तुम उठकर मुझे रास्ता दो।
हनुमान बोले- मैं रोग से पीडि़त हूं, यदि तुम्हें जाना ही है तो मुझे लांघकर चले जाओ।
 

जब भीम ने हनुमान से मांगा जाने का रास्ता

भीम बोले- संसार के सभी प्राणियों में ईश्वर का वास है, इसलिए मैं तुम्हारा लंघन कर परमात्मा का अपमान नहीं करुंगा। यदि मुझे परमात्मा के स्वरूप का ज्ञान न होता तो मैं तुम्ही को क्या, इस पर्वत को भी उसी प्रकार लांघ जाता जैसे हनुमानजी समुद्र को लांघ गए थे।
हनुमानजी ने कहा- यह हनुमान कौन था, जो समुद्र को लांघ गया था? उसके विषय में तुम कुछ कह सकते हो तो कहो।
भीम बोले- वे वानरप्रवर मेरे भाई हैं। वे बुद्धि, बल और उत्साह से संपन्न तथा बड़े गुणवान हैं और रामायण में बहुत ही विख्यात हैं। वे श्रीरामचंद्रजी की पत्नी सीताजी की खोज करने के लिए एक ही छलांग में सौ योजन बड़ा समुद्र लांघ गए थे। मैं भी बल और पराक्रम में उन्हीं के समान हूं। इसलिए तुम खड़े हो जाओ मुझे रास्ता दो। यदि मेरी आज्ञा नहीं मानोगे तो मैं तुम्हें यमपुरी पहुंचा दूंगा।
 

जब हनुमानजी की पूंछ नहीं उठा पाए भीम

भीम की बात सुनकर हनुमानजी बोले- हे वीर। तुम क्रोध न करो, बुढ़ापे के कारण मुझमें उठने की शक्ति नहीं है इसलिए कृपा करके मेरी पूंछ हटाकर निकल जाओ।
यह सुनकर भीम हंसकर अपने बाएं हाथ से हनुमानजी पूंछ उठाने लगे, किंतु वे उसे टस से मस न कर सके। फिर उन्होंने दोनों हाथों से पूंछ उठाने का प्रयास किया, लेकिन इस बार भी वे असफल रहे। तब भीम लज्जा से मुख नीचे करके वानरराज के पास पहुंचे और कहा- आप कौन हैं? अपना परिचय दीजिए और मेरे कटु वचनों के लिए मुझे क्षमा कर दीजिए।
तब हनुमानजी ने अपना परिचय देते हुए कहा कि इस मार्ग में देवता रहते हैं, मनुष्यों के लिए यह मार्ग सुरक्षित नहीं है, इसीलिए मैंने तुम्हें रोका था। तुम जहां जाने के लिए आए हो, वह सरोवर तो यहीं है।
 

हनुमानजी ने भीम को बताया था चारों युगों के बारे में

हनुमानजी की बात सुनकर भीम बहुत प्रसन्न हुए और बोले- आज मेरे समान कोई भाग्यवान नहीं है। आज मुझे अपने बड़े भाई के दर्शन हुए हैं। किंतु मेरी एक इच्छा है, वह आपको अवश्य पूरी करनी होगी। समुद्र को लांघते समय आपने जो विशाल रूप धारण किया था, उसे मैं देखना चाहता हूं।
भीम के ऐसा कहने पर हनुमानजी ने कहा- तुम उस रूप को नहीं देख सकते और न कोई अन्य पुरुष उसे देख सकता है। सतयुग का समय दूसरा था और त्रेता और द्वापर का भी दूसरा है। काल तो निरंतर क्षय करने वाला है, अब मेरा वह रूप है ही नहीं।
​तब भीमसेन ने कहा- आप मुझे युगों की संख्या और प्रत्येक युग के आचार, धर्म, अर्थ और काम के रहस्य, कर्मफल का स्वरूप तथा उत्पत्ति और विनाश के बारे में बताइए।
भीम के आग्रह पर हनुमानजी ने उन्हें कृतयुग, त्रेतायुग फिर द्वापरयुग व अंत में कलयुग के बारे में बताया।
हनुमानजी ने कहा- अब शीघ्र ही कलयुग आने वाला है। इसलिए तुम्हें जो मेरा पूर्व रूप देखना है, वह संभव नहीं है।
 

जब हनुमानजी ने भीम को दिखाया अपना विशाल रूप

हनुमानजी की बात सुनकर भीम बोले- आपके उस विशाल रूप को देखे बिना मैं यहां से नहीं जाऊंगा। यदि आपकी मेरे ऊपर कृपा है तो मुझे उस रूप में दर्शन दीजिए।
भीम के इस प्रकार कहने पर हनुमानजी ने अपना विशाल रूप दिखाया, जो उन्होंने समुद्र लांघते समय धारण किया था। हनुमानजी के उस रूप के सामने वह केलों का बगीचा भी ढंक गया। भीमसेन अपने भाई का यह रूप देखकर आश्चर्यचकित हो गए।
फिर भीम ने कहा- हनुमानजी। मैंने आपके इस विशाल रूप को देख लिया है। अब आप अपने इस स्वरूप को समेट लीजिए। आप तो उगते हुए सूर्य के समान हैं, मैं आपकी ओर देख नहीं सकता।
भीम के ऐसा कहने पर हनुमानजी अपने मूल स्वरूप में आ गए और उन्होंने भीम को अपने गले से लगा लिया। इससे तुरंत ही भीम की सारी थकावट दूर हो गई और सब प्रकार की अनुकूलता का अनुभव होने लगा।
 

हनुमानजी ने भीम को दिया था ये वरदान

गले लगाने के बाद हनुमानजी ने भीम से कहा कि- भैया भीम। अब तुम जाओ, मैं इस स्थान पर रहता हूं- यह बात किसी से मत कहना। भाई होने के नाते तुम मुझसे कोई वर मांगो। तुम्हारी इच्छा हो तो मैं हस्तिनापुर में जाकर धृतराष्ट्र पुत्रों को मार डालूं या पत्थरों से उस नगर को नष्ट कर दूं अथवा दुर्योधन को बांधकर तुम्हारे पास ले आऊं। तुम्हारी जैसी इच्छा हो, उसे मैं पूरी कर सकता हूं।
हनुमानजी की बात सुनकर भीम बड़े प्रसन्न हुए और बोले- हे वानरराज। आपका मंगल हो। आपने जो कहा है वह काम तो होकर ही रहेगा। बस, आपकी दयादृष्टि बनी रहे- यही मैं चाहता हूं।
भीम के ऐसा कहने पर हनुमानजी ने कहा- भाई होने के नाते मैं तुम्हारा प्रिय करूंगा। जिस समय तुम शत्रु सेना में घुसकर सिंहनाद करोगे, उस समय मैं अपने शब्दों से तुम्हारी गर्जना को बढ़ा दूंगा तथा अर्जुन के रथ की ध्वजा पर बैठा हुआ ऐसी भीषण गर्जना करुंगा, जिससे शत्रुओं के प्राण सूख जाएंगे और तुम उन्हें आसानी से मार सकोगे। ऐसा कहकर हनुमानजी ने भीमसेन को मार्ग दिखाया और अंतर्धान हो गए।

गरुड़ पुराण में बताया स्त्रियों को किन 4 बातों का ध्यान हमेशा रखना चाहिए

घर-परिवार हो या समाज, हर जगह स्त्रियों को उचित मान-सम्मान मिले, इसके लिए गरुड़ पुराण में बताया गया है कि स्त्रियों को किन 4 बातों का ध्यान हमेशा रखना चाहिए। यहां जानिए ये 4 बातें कौन-कौन सी हैं...
पहली बात- बहुत ज्यादा विरह से बचना चाहिए
गरुड़ पुराण के अनुसार किसी भी स्त्री को अपने पति से बहुत ज्यादा दिनों तक दूर नहीं रहना चाहिए। जीवन साथी से दूरी स्त्री की मानसिक स्थिति के लिए अच्छी नहीं है। पति से दूर रहने वाली महिला को समाज में कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। घर-परिवार और समाज में उचित मान-सम्मान मिले, इसके लिए स्त्री को जीवन साथी के साथ ही रहना चाहिए। पति के साथ स्त्री अधिक सशक्त और सुरक्षित रहती है।
 
दूसरी बात- बुरे चरित्र वाले लोगों का संग ना करें
स्त्रियों को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि बुरे चरित्र वाले लोगों से दूर ही रहें। गलत आचरण के लोगों की संगत से कभी भी संकट की स्थिति बन सकती है। जिन लोगों की सोच गलत होती है, वे दूसरों को नुकसान पहुंचाने में थोड़ा सा भी सोच-विचार नहीं करते हैं। निजी स्वार्थ और इच्छाओं को पूरा करने के लिए बुरे लोग कुछ भी कर सकते हैं। इसीलिए किसी भी परिस्थिति में ऐसे लोगों का संग ना करें और इनसे सावधान रहना चाहिए।
 
तीसरी बात- अपनों की उपेक्षा करें
इस बात ध्यान विशेष रूप से रखना चाहिए। घर-परिवार के लोगों के साथ बुरा व्यवहार नहीं करना चाहिए। किसी भी परिस्थिति में घर के लोगों का अपमान न करें। अन्यथा कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही, इस बात का भी ध्यान रखें कि शुभचिंतकों की उपेक्षा करते हुए पराए लोगों के लिए प्रेम, स्नेह प्रकट न करें। इस बात की वजह से बड़ी परेशानियां उत्पन्न हो सकती हैं।
 
चौथी बात- पराए घर में रहें
स्त्रियों को पराए घर में रुकना नहीं चाहिए। इस बात की अनदेखी करने पर भयंकर परेशानियों हो सकती हैं। पराए घर में रहने वाली स्त्री की छबि पर बुरा असर होता है और उसे घर-परिवार और समाज में भी गलत नजर से देखा जाता है। साथ ही, पराए लोगों पर भरोसा करने से व्यक्तिगत हानि भी हो सकती है।
 

Thursday 24 December 2015

पूजन आदि शुभ कार्यों में दक्षिणावर्ती व मोती शंख



हिंदू धर्म में शंख को बहुत ही पवित्र माना गया है। पूजन आदि शुभ कार्यों में भी इसका उपयोग किया जाता है। आज हम आपको दक्षिणावर्ती व मोती शंख के बारे में बता रहे हैं। इन दोनों शंखों का उपयोग ज्योतिषीय उपायों में किया जाता है। ये हैं इनसे किए जाने वाले उपाय-

दक्षिणावर्ती शंख

ज्योतिषीय उपायों में दक्षिणावर्ती शंख का विशेष महत्व है। इस शंख को विधि-विधान पूर्वक घर में रखने से कई प्रकार की बाधाएं शांत हो जाती हैं और धन की भी कमी नहीं होती, लेकिन इसे घर में रखने से पहले इसका शुद्धिकरण अवश्य करना चाहिए।
इस विधि से करें शुद्धिकरण
लाल कपड़े के ऊपर दक्षिणावर्ती शंख को रखकर इसमें गंगाजल भरें और कुश (एक विशेष प्रकार की घास) के आसन पर बैठकर इस मंत्र का जाप करें- ऊं श्री लक्ष्मी सहोदराय नम:
इस मंत्र की कम से कम 5 माला जाप करें।
उपाय
1. दक्षिणावर्ती शंख को अन्न भंडार में रखने से अन्न, धन भंडार में रखने से धन, वस्त्र भंडार में रखने से वस्त्र की कभी कमी नहीं होती। बेडरूम में इसे रखने से शांति का अनुभव होता है।
2. इस शंख में शुद्ध जल भरकर, व्यक्ति, वस्तु, स्थान पर छिड़कने से दुर्भाग्य, अभिशाप, तंत्र-मंत्र आदि का प्रभाव समाप्त हो जाता है।
3. इसे घर में रखने से सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा अपने आप ही समाप्त हो जाती है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार होता है।

मोती शंख
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, मोती शंख एक विशेष प्रकार का शंख होता है। ये आम शंख से थोड़ा अलग दिखाई देता है और थोड़ा चमकीला भी होता है। इस शंख को विधि- विधान से पूजन कर यदि तिजोरी में रखा जाए तो घर, ऑफिस व दुकान में पैसा टिकने लगता है। आमदनी बढऩे लगती है।
उपाय
किसी बुधवार को सुबह स्नान कर साफ कपड़े में अपने सामने मोती शंख को रखें और उस पर केसर से स्वस्तिक का चिह्न बना दें। इसके बाद नीचे लिखे मंत्र का जाप करें-
श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:
मंत्र का जप स्फटिक माला से ही करें। मंत्रोच्चार के साथ एक-एक चावल इस शंख में डालें। इस बात का ध्यान रखें कि चावल टूटे हुए ना हो। यह प्रयोग लगातार 11 दिनों तक करें। इस प्रकार रोज एक माला जाप करें। उन चावलों को एक सफेद रंग के कपड़े की थैली में रखें और ग्यारह दिनों के बाद चावल के साथ शंख को भी उस थैली में रखकर तिजोरी में रखें। कुछ ही दिनों में धन वृद्धि के योग बनने लगेंगे।

लघु व एकाक्षी नारियल

ज्योतिषीय उपायों में अनेक चीजों का उपयोग किया जाता है। दिखने में ये चीजें भले ही साधारण लगे, लेकिन ज्योतिष उपायों में उपयोग होने के कारण ये बहुत ही खास होती हैं। कुछ ज्योतिषीय उपायों में कुछ खास तरह के नारियलों का उपयोग किया जाता है, इनके नाम हैं लघु व एकाक्षी नारियल। आज हम आपको लघु तथा एकाक्षी नारियल तथा उनसे किए जाने वाले उपायों के बारे में बता रहे हैं-

लघु नारियल

लघु नारियल का आकार सामान्य नारियल से थोड़ा छोटा होता है। इसका प्रयोग कई उपायों में किया जाता है, खासकर धन-संपत्ति प्राप्ति के उपायों में। लघु नारियल के कुछ साधारण प्रयोग इस प्रकार हैं-
1. किसी शुभ मुहूर्त में 11 लघु नारियल पूजन कक्ष में स्थापित मां लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र के चरणों में रखकर ऊं महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्नीं च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् मंत्र का जाप करें। 2 माला जाप करने के बाद एक लाल कपड़े में उन लघु नारियलों को लपेट कर तिजोरी में रख दें व दीपावली के दूसरे दिन किसी नदी या तालाब में विसर्जित कर दें। ऐसा करने से धन संबंधी समस्या का स्थायी निदान हो सकता है।

2. धन, वैभव व समृद्धि पाने के लिए 5 लघु नारियल स्थापित कर, उस पर केसर से तिलक करें और हर नारियल पर तिलक करते समय 27 बार नीचे लिखे मंत्र का मन ही मन जाप करते रहें-
मंत्र- ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं

3.
अगर आप चाहते हैं कि आपके घर में कभी धन व अनाज की कमी न रहे और अन्न का भंडार भरा रहे तो 11 लघु नारियल एक पीले कपड़े में बांधकर रसोई घर के पूर्वी कोने में बांध दें।

एकाक्षी नारियल

धार्मिक मान्यता के अनुसार ये नारियल साक्षात लक्ष्मी का रूप होता है। इसके ऊपर आंख के समान एक चिह्न होता है। इसलिए इसे एकाक्षी (एक आंख वाला) नारियल कहते हैं। इसे घर में रखने से ही कई प्रकार की समस्याएं स्वत: ही दूर हो जाती हैं। ये हैं इसके खास उपाय-

1. जिस घर में एकाक्षी नारियल की पूजा होती है, उस घर के लोगों पर तांत्रिक क्रियाओं का प्रभाव नहीं होता है एवं उस परिवार के सदस्यों को मान-सम्मान, प्रतिष्ठा व यश प्राप्त होता है।
2. यदि मुकद्मे में विजय प्राप्त करनी हो तो रविवार के दिन एकाक्षी नारियल पर विरोधी का नाम लिख कर, उस पर लाल कनेर का फूल रख दें और जिस दिन न्यायालय जाएं वह फूल साथ ले जाएं। फैसला आपके पक्ष में होने की संभावना बढ़ जाती है।

भगवान शिव ने मारा था भगवान विष्णु के पुत्रों को!



हमारी पौराणिक कथाओं में एक से बढ़कर एक अनूठी और आश्चर्यचकित कर देने वाली घटनाओं का वर्णन है. अब इनमें से कौनसी सत्य है और कौनसी मिथक ये तो वही लोग जानते है जिन्होंने ग्रंथों कि रचना की  थी. हम और आप तो केवल अनुमान ही लगा सकते है कि ये जो कथाएं है उनमें कितनी सच्चाई है.

आज आपको जो पौराणिक कथा बताने जा रहे है वो शायद आपने पहले कभी ना सुनी हो.आइये आपको बताते है कि क्यों सृष्टि के पालनकर्ता विष्णु के पुत्रों का वध भगवन शिव ने किया था सागर मंथन की कथा तो हमने बहुत बार सुनी है. किस प्रकार वासुकी नाग को रस्सी बनाकर समुद्र का मंथन देवताओं और असुरों ने किया था. सागर मंथन के दौरान बहुत सी चमत्कारिक और बहुमूल्य वस्तुएं निकली. इन सब वस्तुओं को बारी बारी से देवताओं और असुरों में बाँट लिया गया.

लेकिन संघर्ष कि स्थिति तब आई जब समुद्र में से अमृत निकला. जिसे पीने पर अमरता प्राप्त हो जाती है. अमृत के लिए देवताओं और असुरों में झगडा शुरू हो गया.  सभी चिंतित हो गए यदि अमृत असुरों के हाथ लग गया तो तीनों लोकों में उनका राज हो जायेगा.

कोई युक्ति न सूझने पर सभी देवता विष्णु के पास मदद ले लिए गए भगवान विष्णु अपनी माया के लिए प्रसिद्ध थे. उन्होंने देवताओं की समस्या सुनी और समाधान करने का आश्वासन  दिया. भगवान विष्णु ने अत्यंत रूपवान स्त्री का मोहिनी रूप धारण किया और असुरों को रिझाने लगे. मोहिनी रूप को देखकर सभी असुर लट्टू हो गए और उनके पीछे पीछे आने लगे. भगवान विष्णु ने अपनी माया से मोहिनी जैसी अनेकों अप्सराओं का निर्माण भी किया.

इन अप्सराओं पर मोहित होकर सभी असुर उन्हें अपने साथ ले जाने लगे. सभी असुर अप्सराओं और मोहिनी के साथ पाताल चले गए. पाताल में जाने के बाद असुरों ने उन रूपवान अप्सराओं के साथ हर तरह से आनंद उठाया. जब असुर ऊपर अमृत लेने पहुंचे तो उन्होंने देखा कि अमृत तो देवताओं ने पी लिया था.

क्रोधित होकर असुरों ने देवताओं पर हमला किया. भगवान विष्णु ने असुरों को परास्त कर दिया और उन्हें पाताल में खदेड़ दिया.

भगवान विष्णु को देखकर पाताल कि अप्सराएँ उन पर मोहित हो गयी और उन्होंने शिव से वरदान माँगा कि विष्णु को पाताल में ही रहने दिया जाए. अप्सराओं कि विनती पर भगवान शिव ने विष्णु कि यादाश्त भुला दी और उन्हें पाताल में छोड़ दिया. समय बीतने के साथ भगवान विष्णु और अप्सराओं के संबंधों के फलस्वरूप बहुत से बालकों का जन्म हुआ.

भगवन विष्णु और अप्सराओं की ये संताने बहुत ही आसुरी प्रवृत्ति की थी. इनके अत्याचारों से धरती और स्वर्ग कांप उठे थे. व्यथा सुनकर भगवान शिव ने वृषभ रूप लिया और पाताल में जाकर विष्णु के सभी आसुरी पुत्रों का वध कर दिया. जब विष्णु को इस बात का पता चला तो वो अत्यंत क्रोधित हो उठे और भगवान शिव को युद्ध के लिए ललकारने लगे. वृश्भ्ह रुपी शिव और विष्णु में भीषण युद्ध हुआ. ये युद्ध लगातार कई वर्षों तक चलता रहा लेकिन दोनों में से कोई भी देवता युद्ध से पीछे नहीं हट रहा था. इस भीषण युद्ध को देखकर देवता और दानव सभी भयभीत हो गए.

पाताल कि अप्सराओं ने इस भीषण युद्ध को देखकर भगवन विष्णु को अपने वरदान से मुक्त कर दिया. इसके बाद युद्ध खत्म हुआ और भगवान विष्णु पाताल से बैकुंठ वापस चले गए.

तो देखा आपने कैसे सृष्टि के पालक और संहारक एक दुसरे की जान के दुश्मन बन गए थे.अगर समय रहते ये युद्ध रोका नहीं जाता तो सृष्टि का सर्वनाश निश्चित था.



क्या कारण है कि महादेव अपने तन पर भस्म रमाये रहते है



शिव शंकर चाहे तो  सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के अनमोल से अनमोल वस्तु वस्त्र और रत्नों को धारण कर सकते है, लेकिन शिव का श्रृंगार होता है भस्म से.आखिर ऐसा क्या कारण है कि महादेव अपने तन पर भस्म रमाये रहते है और क्या चमत्कार करती है ये भस्म?पुराणों और शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश सृष्टि के रचियेता,पालनकर्ता और संहारक है. सतयुग त्रेतायुग, द्वापर युग और कलियुग इन चार युगों के पूरा होने पर सृष्टि का एक चक्र पूरा हो जाता है.इस चक्र के पूरा होने के बाद महादेव सृष्टि का संहार कर देते है.संहार होने के बाद ब्रह्मा फिर से एक बार नए सिरे से सृष्टि की रचना करते है. भस्म शिव द्वारा सृष्टि के संहार का प्रतीक होता है.भस्म या राख का मतलब है कि सृष्टि का अंत रख हो जाना ही है.इसीलिए शिव भस्म को अपने बदन पर रमाये रहते है. भस्म सृष्टि का प्रतेक चिन्ह है. यही कारण है कि दूध और जल आदि से अभिषेक करने के बाद भी शिव को भस्म लगाई जाती है.आइये आपको बताते है कि किस प्रकार ये चमत्कारिक भस्म बनायी जाती है.महादेव के श्रृंगार के लिए भस्म भी विशेष रूप से तैयार की जाती है. गाय के गोबर के कंडे, पीपल, बेर, अमलतास, बरगदऔर पलाश की लकड़ियों को जलाकर मंत्रोच्चार किया जाता है.इन सबके जलने के बाद जो राख प्राप्त होती है उसे छान कर भस्म अलग कर ली जाती है.इसी भस्म से शिव का श्रृंगार किया जाता है. शिव के लिए तैयार की गयी भस्म को अगर कोई लगता है तो उसे भी बहुत लाभ होता है. भस्म लगाने से आकर्षण में वृद्धि होती है. सुख सुविधा की प्राप्ति होती है. शिव भस्म का तिलक लगाने से मन में शांति आती है.भस्म लगाने का विज्ञानिक महत्व भी है. भस्म से चीज़ें शुद्ध हो जाती है. भस्म के उपयोग से कीटाणु नष्ट हो जाते है. भस्म लगाने से प्रतिकूल वातावरण में शरीर का तापमान नियंत्रण में रहता है. ये भी कहा जाता है कि शिव भस्म का तिलक लगाने से पापों से मुक्ति मिलती है और सब कष्ट भी दूर हो जाते है.देखा आपने शिव की भस्म का तिलक लगाने के पीछे आध्यात्मिक के साथ साथ वैज्ञानिक कारण भी है.