Friday 4 September 2015

हर रात कृष्ण और राधा आज भी रासलीला करते हैं निधिवन में,जिसने भी देखा हो गया पागल

 श्रीकृष्ण की लीलाओं के चर्चे देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी हैं। उन्हीं में से एक लीला है रासलीला। ऐसी मान्यता है कि वृंदावन में स्थित निधिवन में श्रीकृष्ण गोपियों के साथ रास रचाते थे और ये सिलसिला यहां आज भी जारी है। इसलिए सुबह से दर्शन के लिए खुला रहने वाला निधिवन शाम को बंद कर दिया जाता है। ये भी कहा जाता है कि यहां रात को रुककर जिसने भी रासलीला देखनी चाही, उसने या तो अपना मानसिक संतुलन खो दिया या फिर उसकी मौत हो गई।
निधिवन के मुख्य गोसाईं भीख चंद्र गोस्वामी ने बताया कि बंदर और चिड़िया भी शाम होते ही निधिवन को खाली कर देते हैं। शाम होते ही वहां सन्‍नाटा छा जाता है। उनका कहना है कि सिर्फ निधिवन ही नहीं बल्कि थोड़ी दूर स्थित सेवाकुंज में भी कृष्णा रास रचाते हैं, जो राधा रानी का मंदिर है।
राधा और कृष्ण के लिए सजती है सेज
धार्मिक मान्यता के अनुसार, निधिवन के अंदर बने 'रंग महल' में रोज रात को कन्हैया आते हैं। रंग महल में राधा और कन्हैया के लिए रखे गए चंदन के पलंग को शाम सात बजे से पहले सजा दिया जाता है। पलंग के बगल में एक लोटा पानी, राधाजी के श्रृंगार का सामान और दातुन संग पान रख दिया जाता है।
पवित्र है निधिवन की भूमि
निधिवन की भूमि इतनी पवित्र है कि यहां लगे पेड़ों की डालें ऊपर की तरफ बढ़ने की बजाए जमीन की ओर अपना रुख मोड़ लेती हैं। इस बारे में भीख चंद्र गोस्वामी कहते हैं कि यहां नंद गोपाल के चरणों में सिर्फ भक्त ही नहीं, बल्कि पेड़-पौधे भी उनकी मिट्टी में समा जाना चाहते हैं। इसलिए ये पेड़ हमेशा आसमान की ओर नहीं,बल्कि जमीन की ओर बढ़ते हैं। आलम अब ये चुका है कि रास्ता बनाने के लिए इन पेड़ों को डंडे के सहारे रोका गया है।
छिपकर देखी रासलीला और खो बैठा मानसि‍क संतुलन
गोसाईं भीख चंद्र गोस्वामी एक वाकया याद करते हुए बताते हैं कि करीब 10 साल पहले संतराम नामक एक राधा-कृष्‍ण का भक्त था। वह जयपुर से आया था। वह भगवान की भक्ति में इतना लीन हो गया कि उसने रासलीला देखने की ठान ली और चुपके से नि‍धि‍वन में छिपकर बैठ गया। सुबह जब मंदिर के पट खुले तो वह बेहोश था। संतराम जब होश में आया तो वह अपना मानसिक संतुलन खो चुका था।
दोबारा खोया मानसिक संतुलन
संतराम को उसके परिवार के पास जयपुर भिजवाने वाले वृंदावन के स्थानीय निवासी कृष्णा शर्मा ने कहा, 'ऐसी कई घटनाएं मैंने भी सुनी हैं, लेकिन संतराम के साथ जो हुआ उसका मैं प्रत्यक्ष गवाह हूं। वह कहते हैं कि करीब पांच साल बाद संतराम ठीक होकर फिर वृंदावन आया था। जैसे ही वह निधिवन की ओर बढ़ा, एक बार फिर वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठा।'
रास मंडल में रास रचाते हैं कन्हैया
सुबह पांच बजे जब 'रंग महल' के पट खुलते हैं तो बिस्तर अस्त-व्यस्त, लोटे का पानी खाली, दातुन कुची हुई और पान खाया हुआ मिलता है। ऐसी मान्यता है कि रात के समय जब कन्हैया आते हैं तो राधा जी 'रंग महल' में श्रृंगार करती हैं। चंदन के पलंग पर कन्हैया आराम करते हैं। उसके बाद राधा जी के संग 'रंग महल' के पास बने 'रास मंडल' में रास रचाते हैं।
तुलसी का पौधा बनती हैं गोपियां
खास बात ये है कि इस निधिवन में तुलसी का हर पेड़ जोड़े में है। मान्यता है कि जब राधा संग कृष्ण वन में रास रचाते हैं तब यही जोड़ेदार पेड़ गोपियां बन जाती हैं। जैसे ही सुबह होती है तो सब फिर तुलसी के पेड़ में तब्दील हो जाती हैं।

वंशी चोर राधा रानी का भी है मंदिर
निधिवन में ही वंशी चोर राधा रानी का भी मंदिर बना हुआ है। यहां के महंत बताते हैं कि जब राधा जी को लगने लगा कि कन्हैया हर समय वंशी ही बजाते रहते हैं और उनकी तरफ बिल्कुल ध्यान नहीं देते, तो उन्होंने उनकी वंशी चुरा ली। इस मंदिर में कृष्ण जी की सबसे प्रिय गोपी ललिता जी की भी मूर्ति राधा जी के साथ है।

वन तुलसी की डंडिया तक कोई नहीं ले सकता
ऐसी मान्यता है कि इस वन में लगी वन तुलसी की एक डंडी तक कोई नहीं लेकर जा सकता। लोग बताते हैं कि जो लोग भी ले गए वो किसी न किसी आपदा का शिकार हो गए। इसलिए कोई भी इन्हें नहीं छूता है।
वन के आसपास बने मकानों में नहीं हैं खिड़कियां
वन के आसपास बने मकानों में खिड़कियां नहीं हैं। यहां के निवासी बताते हैं कि शाम सात बजे के बाद कोई इस वन की तरफ नहीं देखता है। जिन लोगों ने देखने का प्रयास किया वो या तो अंधे हो गए या फिर उनके ऊपर दैवी आपदा आ गई। जिन मकानों में खिड़कियां हैं भी, उनके घर के लोग शाम सात बजे मंदिर की आरती का घंटा बजते ही बंद कर लेते हैं। कुछ लोगों ने तो अपनी खिड़कियों को ईंटों से बंद भी करा दिया है।
वन में कई लोगों की है समाधि
वन के अंदर कई लोगों की समाधि है। इसमें एक पगला बाबा की भी समाधि है। इनके बारे में ऐसी मान्‍यता है कि इन लोगों ने वन के अंदर छिपकर राधा-कृष्‍ण की रासलीला देखने का प्रयास किया था। इनमें कुछ लोग तो अंधे होकर पागल हो गए या मर गए। इन लोगों में एक पगला बाबा की समाधि को मंदिर प्रबंधन ने बनवा रखा है।
क्या कहना है जानकारों का
विख्यात ज्योतिषाचार्य पवन सिन्हा के मुताबिक, शरीर से निकलने के बावजूद कई बार आत्माएं विशेष स्थान पर मौजूद रहती हैं। निधिवन में हजारों वर्षों की तपस्या का पौराणिक प्रमाण मिलता है। इन्हीं तपस्वियों में से कुछ की समाधियां यहां मौजूद है। उनका कहना है कि कुछ आत्माओं में ऊर्जा का लेवल बहुत ज्यादा होता है। ऐसे में परालौकिक गतिविधियां भी यहां होती रहती हैं। निधिवन के बारे में लोगों की एक मानसिकता बनी हुई है कि यहां रात में रुकने वालों का कुछ अहित होता है। ऐसे में वहां जो भी रुकता है और नॉर्मल गतिविधि भी देखता है तो वो चौंक जाता है। इसी वजह से वो या तो अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है या फिर हार्टअटैक से मर जाता है

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत हो जाती हैं। कामना पूरी ,पूजन विधि व शुभ मुहूर्त

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के निमित्त व्रत रखा जाता है व विशेष पूजन किया जाता है। जो भी भक्त सच्चे मन से व्रत रखता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह मोह-माया के बंधन से मुक्त हो जाता है। यदि यह व्रत किसी विशेष कामना के लिए किया जाए तो वह कामना भी शीघ्र ही पूरी हो जाती है।

शैव-वैष्णव मंदिरों में एक ही दिन जन्माष्टमी

दो साल बाद यह अवसर आया है जब शैव एवं वैष्णव संप्रदाय 5 सितंबर को एक साथ जन्माष्टमी पर्व मनाएंगे। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. श्यामनारायण व्यास के अनुसार 5 सितंबर को रोहिणी नक्षत्र का संयोग बन रहा है तथा 6 सितंबर को अष्टमी शाम तक ही है। चूंकि कृष्ण जन्म रात 12 बजे मनाया जाता है। इसलिए इस बार सभी जगह एक साथ 5 सितंबर को ही जन्माष्टमी मनाई जा रही है।

शुभ मुहूर्त

5 सितंबर को सूर्योदय से रात लगभग 12:10 तक रोहिणी नक्षत्र रहेगा। शनिवार को अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र के संयोग से सर्वार्थसिद्धि योग बन रहा है इसलिए पूरा दिन शुभ रहेगा। भगवान कृष्ण की विशेष पूजा करने के लिए शुभ मुहूर्त ये हैं-
सुबह 7:40 बजे से 9:15 बजे तक - शुभ
दोपहर 12 बजे से 12:50 बजे तक - अभिजित मुहूर्त
दोपहर 12:20 से 1:50 बजे तक - चल
दोपहर 1:50 बजे से 3:30 बजे तक - लाभ
दोपहर 3:30 बजे से शाम 5 बजे तक - अमृत
शाम 6:30 बजे से रात 8:00 बजे तक - लाभ
रात 9:30 बजे से 11:00 बजे तक - शुभ
रात 11:00 बजे से 12:30 बजे तक - अमृत
पूजन विधि
जन्माष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठें और स्नान आदि करने के बाद सभी देवताओं को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत का संकल्प लें (जैसा व्रत आप कर सकते हैं वैसा संकल्प लें यदि आप फलाहार कर व्रत करना चाहते हैं तो वैसा संकल्प लें और यदि एक समय भोजन कर व्रत करना चाहते हैं तो वैसा संकल्प लें)।


इसके बाद माता देवकी और भगवान श्रीकृष्ण की सोने, चांदी, तांबा, पीतल अथवा मिट्टी की (यथाशक्ति) मूर्ति या चित्र पालने में स्थापित करें। भगवान श्रीकृष्ण को नए वस्त्र अर्पित करें। पालने को सजाएं। इसके बाद सोलह उपचारों से भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करें। पूजन में देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी आदि के नाम भी बोलें। अंत में माता देवकी को अर्घ्य दें। भगवान श्रीकृष्ण को फूल अर्पित करें।


रात में 12 बजे के बाद श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाएं। पालने को झूला करें। पंचामृत में तुलसी डालकर व माखन मिश्री का भोग लगाएं। आरती करें और रात्रि में शेष समय स्तोत्र, भगवद्गीता का पाठ करें। दूसरे दिन पुन: स्नान कर जिस तिथि एवं नक्षत्र में व्रत किया हो, उसकी समाप्ति पर व्रत पूर्ण करें।

भगवान श्रीकृष्ण की आरती

आरती कुंजविहारी की। श्रीगिरधर कृष्णमुरारी की।।
गले में बैजंतीमाला, बजावै मुरली मधुर वाला।
श्रवन में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला। श्री गिरधर ..
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली,
लतन में ठाढ़े बनमाली।
भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सो झलक,
ललित छवि स्यामा प्यारी की। श्री गिरधर ..
कनकमय मोर-मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसे,
गगन सो सुमन राशि बरसै,
बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालनी संग,
अतुल रति गोपकुमारी की। श्री गिरधर ..
जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा,
स्मरन ते होत मोह-भंगा,
बसी शिव सीस, जटा के बीच, हरै अध कीच,
चरन छवि श्रीबनवारी की। श्री गिरधर ..
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृन्दावन बेनू,
चहूं दिसि गोपी ग्वाल धेनू,
हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद, कटत भव-फंद,
टेर सुनु दीन भिखारी की। श्री गिरधर ..
आरती कुंजबिहारी की। श्री गिरधर कृष्णमुरारी की।
भगवान शंकराचार्य ने स्वयं विष्णु के अद्भुत स्वरूप को उनके दो प्रमुख अवतारों - भगवान राम व श्रीकृष्ण की स्तुति के साथ अच्युताष्टक के रूप में प्रकट किया। इसमें भगवान विष्णु के साथ श्रीराम और श्रीकृष्ण की लीलाओं का स्मरण मन-मस्तिष्क को अंतहीन शांति, सुख व ऊर्जा से भर देता है। इससे जीवन की तमाम मुश्किलें आसान हो जाती हैं।

अच्युताष्टक

अच्युतं केशवं रामनारायणं कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम्
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं जानकीनायकं रामचन्द्रं भजे ।1।
अच्युतं केशवं सत्यभामाधवं माधवं श्रीधरं राधिकाराधितम्
इन्दिरामन्दिरं चेतसा सुन्दरं देवकीनन्दनं नन्दनं संदधे ।2।
विष्णवे जिष्णवे शङ्खिने चक्रिणे रुक्मिनीरागिणे जानकीजानये
वल्लवीवल्लभायाऽर्चितायात्मने कंसविध्वंसिने वंशिने ते नम: ।3।
कृष्ण गोविन्द हे राम नारायण श्रीपते वासुदेवाजित श्रीनिधे
अच्युतानन्त हे माधवाधोक्षज द्वारकानायक द्रौपदीरक्षक ।4।
राक्षसक्षोभित: सीतया शोभितो दण्डकारण्यभूपुण्यताकारण:
लक्ष्मणेनान्वितो वानरै: सेवितोऽगस्त्यसंपूजितो राघव: पातु माम् ।5।
धेनुकारिष्टकोऽनिष्टकृद्द्वेषिणां केशिहा कंसहृद्वंशिकावादक:
पूतनाकोपक: सूरजाखेलनो बालगोपालक: पातु माम् सर्वदा ।6।
विद्युदुद्धयोतवानप्रस्फुरद्वाससं प्रावृडम्भोदवत्प्रोल्लसद्विग्रहम्
वन्यया मालया शोभितोर:स्थलं लोहितांघ्रिद्वयं वारिजाक्षं भजे ।7।
कुञ्चितै: कुन्तलैभ्र्राजमानाननं रत्नमौलिं लसत् कुण्डलं गण्डयो:
हारकेयूरकं कङ्कणप्रोज्ज्वलं किङ्किणीमञ्जुलं श्यामलं तं भजे ।8।
अच्युतस्याष्टकं य: पठेदिष्टदं प्रेमत: प्रत्यहं पुरुष: सस्पृहम्
वृत्तत: सुंदरं कर्तृ विश्वंभरं तस्य वश्यो हरिर्जायते सत्वरम् ।9।

श्रीकृष्ण स्तुति

नमो विश्वस्वरूपाय विश्वस्थित्यन्तहेतवे।
विश्वेश्वराय विश्वाय गोविन्दाय नमो नम:॥1॥
नमो विज्ञानरूपाय परमानन्दरूपिणे।
कृष्णाय गोपीनाथाय गोविन्दाय नमो नम:॥2॥
नम: कमलनेत्राय नम: कमलमालिने।
नम: कमलनाभाय कमलापतये नम:॥3॥
बर्हापीडाभिरामाय रामायाकुण्ठमेधसे।
रमामानसहंसाय गोविन्दाय नमो नम:॥4॥
कंसवशविनाशाय केशिचाणूरघातिने।
कालिन्दीकूललीलाय लोलकुण्डलधारिणे॥5॥
वृषभध्वज-वन्द्याय पार्थसारथये नम:।
वेणुवादनशीलाय गोपालायाहिमर्दिने॥6॥
बल्लवीवदनाम्भोजमालिने नृत्यशालिने।
नम: प्रणतपालाय श्रीकृष्णाय नमो नम:॥7॥
नम: पापप्रणाशाय गोवर्धनधराय च।
पूतनाजीवितान्ताय तृणावर्तासुहारिणे॥8॥
निष्कलाय विमोहाय शुद्धायाशुद्धवैरिणे।
अद्वितीयाय महते श्रीकृष्णाय नमो नम:॥9॥
प्रसीद परमानन्द प्रसीद परमेश्वर।
आधि-व्याधि-भुजंगेन दष्ट मामुद्धर प्रभो॥10॥
श्रीकृष्ण रुक्मिणीकान्त गोपीजनमनोहर।
संसारसागरे मग्नं मामुद्धर जगद्गुरो॥11॥
केशव क्लेशहरण नारायण जनार्दन।
गोविन्द परमानन्द मां समुद्धर माधव॥12॥

मधुराष्टकं

मधुराष्टकंअधरम मधुरम वदनम मधुरमनयनम मधुरम हसितम मधुरम।
हृदयम मधुरम् गमनम् मधुरम्, मधुराधिपतेर अखिलम मधुरम॥1॥
वचनं मधुरं, चरितं मधुरं, वसनं मधुरं, वलितं मधुरम् ।
चलितं मधुरं, भ्रमितं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥2॥
वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुर:, पाणिर्मधुर:, पादौ मधुरौ ।
नृत्यं मधुरं, सख्यं मधुरं, मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥3॥
गीतं मधुरं, पीतं मधुरं, भुक्तं मधुरं, सुप्तं मधुरम् ।
रूपं मधुरं, तिलकं मधुरं, मधुरधिपतेरखिलं मधुरम् ॥4॥
करणं मधुरं, तरणं मधुरं, हरणं मधुरं, रमणं मधुरम् ।
वमितं मधुरं, शमितं मधुरं, मधुरधिपतेरखिलं मधुरम् ॥5॥
गुञ्जा मधुरा, माला मधुरा, यमुना मधुरा, वीची मधुरा ।
सलिलं मधुरं, कमलं मधुरं, मधुरधिपतेरखिलं मधुरम् ॥6॥
गोपी मधुरा, लीला मधुरा, युक्तं मधुरं, मुक्तं मधुरम् ।
दृष्टं मधुरं, शिष्टं मधुरं, मधुरधिपतेरखिलं मधुरम् ॥7॥
गोपा मधुरा, गावो मधुरा, यष्टिर्मधुरा, सृष्टिर्मधुरा।
दलितं मधुरं, फलितं मधुरं, मधुरधिपतेरखिलं मधुरम् ॥8॥॥
इति श्रीमद्वल्लभाचार्यविरचितं मधुराष्टकं सम्पूर्णम् ॥

एक श्लोकी भागवत

श्रीमद्भागवत पर ही आधारित एक श्लोकी भागवत में भी भगवान श्रीकृष्ण की ही महिमा का गुणगान किया गया है। इसके जरिए आप घर या कार्यालय में बैठ श्रीकृष्ण जन्माष्टमी या वर्तमान में जारी चातुर्मास के विष्णु भक्ति कर श्रीमद्भागवत पाठ का महापुण्य भी बटोर सकते हैं। एक श्लोकी भागवत से श्रीकृष्ण का स्मरण किसी भी वक्त सभी कष्ट व संकटों से मुक्ति देने वाला भी माना गया है -
आदौ देवकी देवी गर्भजननम् गोपीगृहे वर्धनम्
माया पूतन जीविताप हरणम् गोवर्धनोद्धारणम्
कंसच्छेदन कौरवादी हननम् कुंतीसुत पालनम्
एतद् भागवतम् पुराण कथितम् श्रीकृष्णलीलामृतम्।