Thursday 31 March 2016

क्यों मनाते हैं बसौड़ा पर्व

शीतला माता का व्रत चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की सप्तमी-अष्टमी को होता है. शास्‍त्रों के अनुसार इस पूजा का बहुत महत्‍व होता है और इसे करने से घर रोगों से दूर रहता है. स्कन्दपुराण के अनुसार इस व्रत को चार महीनों में करने का विधान है. इस व्रत पर एक दिन पहले बनाया हुआ भोजन किया जाता है. इसलिए इसे बसौड़ा, लसौड़ा या बसियौरा भी कहते हैं.
क्यों मनाते हैं बसौड़ा पर्व?

बसौड़ा, शीतलता का पर्व भारतीय सनातन परंपरा के अनुसार महिलाएं अपने बच्चों की सलामती, आरोग्यता व घर में सुख-शांति के लिए रंगपंचमी से अष्टमी तक मां शीतला को बसौड़ा बनाकर पूजती हैं. बसौड़ा में मीठे चावल, कढ़ी, चने की दाल, हलवा, रबड़ी, बिना नमक की पूड़ी, पूए आदि एक दिन पहले ही रात में बनाकर रख लिए जाते हैं.
सुबह घर व मंदिर में माता की पूजा-अर्चना कर महिलाएं शीतला माता को बसौड़ा का प्रसाद चढ़ाती हैं. पूजा करने के बाद घर की महिलाएं बसौड़ा का प्रसाद अपने परिवार में बांट कर सभी के साथ मिलजुल कर बासी भोजन ग्रहण करके माता का आशीर्वाद लेती हैं.
बसौड़ा पर्व की पौराणिक कथा
किंवदंतियों के अनुसार बसौड़ा की पूजा माता शीतला को प्रसन्न करने के लिए की जाती है. कहते हैं कि एक बार किसी गांव में गांववासी शीतला माता की पूजा-अर्चना कर रहे थे और गांववासियों ने गरिष्ठ भोजन माता को प्रसादस्वरूप चढ़ा दिया. शीतलता की प्रतिमूर्ति मां भवानी का मुंह गर्म भोजन से जल गया और वे नाराज हो गईं.
उन्होंने कोपदृष्टि से संपूर्ण गांव में आग लगा दी. बस केवल एक बुढ़िया का घर सुरक्षित बचा हुआ था. गांव वालों ने जाकर उस बुढ़िया से घर न जलने के बारे में पूछा तो बुढ़िया ने मां शीतला को गरिष्ठ भोजन खिलाने वाली बात कही और कहा कि उन्होंने रात को ही भोजन बनाकर मां को भोग में ठंडा-बासी भोजन खिलाया. जिससे मां ने प्रसन्न होकर बुढ़िया का घर जलने से बचा लिया.
बुढ़िया की बात सुनकर गांव वालों ने मां से क्षमा मांगी और रंगपंचमी के बाद आने वाली सप्तमी के दिन उन्हें बासी भोजन खिलाकर मां का बसौड़ा पूजन किया.
शीतला माता का व्रत कैसे करें?
- व्रती को इस दिन प्रातःकालीन नित्‍य कर्मों से निवृत्त होकर स्वच्छ व शीतल जल से स्नान करना चाहिए.
- स्नान के बाद 'मम गेहे शीतलारोगजनितोपद्रव प्रशमन पूर्वकायुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्धिये शीतलाष्टमी व्रतं करिष्ये' मंत्र से संकल्प लेना चाहिए.
- संकल्प के बाद विधि-विधान तथा सुगंधयुक्त गंध व पुष्प आदि से माता शीतला का पूजन करें.
- इसके बाद एक दिन पहले बनाए हुए (बासी) खाना, मेवे, मिठाई, पूआ, पूरी आदि का भोग लगाएं.
- यदि आप चतुर्मासी व्रत कर रहे हो तो भोग में माह के अनुसार भोग लगाएं, जैसे- चैत्र में शीतल पदार्थ, वैशाख में घी और मीठा सत्तू, ज्येष्ठ में एक दिन पूर्व बनाए गए पूए तथा आषाढ़ में घी और शक्कर मिली हुई खीर.
- भोग लगाने के बाद शीतला स्तोत्र का पाठ करें और यदि यह उपलब्ध न हो तो शीतला अष्टमी की कथा सुनें.
- रात्रि में जगराता करें और दीपमालाएं प्रज्ज्वलित करें.

Sunday 27 March 2016

सूर्य अर्घ्य का महत्व और कैसे दें सूर्य को अर्घ्य

भारत के सनातन धर्म में पांच देवों की आराधना का महत्व है. सूर्य, गणेशजी, देवी दुर्गा, शिव और विष्णु. इन पांचों देवों की पूजा सब कार्य में की जाती है. इनमें सूर्य ही ऐसे देव हैं जिनका दर्शन प्रत्यक्ष होता रहा है. सूर्य के बिना हमारा जीवन नहीं चल सकता. सूर्य की किरणों से शारीरिक व मानसिक रोगों से निवारण मिलता है. शास्त्रों में भी सूर्य की उपासना का महत्व बताया गया है.
सूर्य अर्घ्य का महत्व
सूर्य की उपासना की प्रमुख बात यह है कि व्यक्ति को सूर्योदय से पूर्व उठ जाना चाहिए. इसके बाद स्नान आदि से निवृत्त होकर शुद्ध, स्वच्‍छ वस्त्र धारण कर ही सूर्यदेव को अर्घ्य देना चाहिए. सूर्य के सम्मुख खड़े होकर अर्घ्य देने से जल की धारा के अंतराल से सूर्य की किरणों का जो प्रभाव शरीर पर पड़ता है, उससे शरीर के रोग नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति के शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होने लगता है.
कैसे दें सूर्य को अर्घ्य
अर्घ्य दो प्रकार से दिया जाता है. संभव हो तो नदी के जल में खड़े होकर अंजली या फिर तांबे के पात्र में जल भरकर उगते हुए सूर्य को जल चढ़ाना चाहिए. दूसरी विधि में अर्घ्य कहीं से दिया भी जा सकता है. इसमें एक तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें चंदन, चावल तथा फूल (यदि लाल हो तो उत्तम है अन्यथा कोई भी रंग का फूल) लेकर अर्घ्य देना चाहिए.
इन बातों का ध्यान रखें
चढ़ाया गया जल पैरों के नीचे न आए, इसके लिए तांबे अथवा कांसे की थाली रख लें. थाली में जो जल एकत्र हो, उसे माथे पर, हृदय पर एवं दोनों बाहों पर लगाएं. विशेष कष्ट होने पर सूर्य के सम्मुख बैठकर 'आदित्य हृदय स्तोत्र' या 'सूर्याष्टक' का पाठ करें. सूर्य के सम्मुख बैठना संभव न हो तो घर के अंदर ही पूर्व दिशा में मुख कर यह पाठ कर लें. निरोग व्यक्ति भी सूर्य उपासना द्वारा रोगों के आक्रमण से बच सकता है.
सूर्य मंत्र के इन मंत्रों का पाठ करने से भी बहुत लाभ मिलता है....
- ऊं घृ‍णिं सूर्य्य: आदित्य:
- ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।
- ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते,
अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:।
- ॐ ह्रीं घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ।
- ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः।

Monday 21 March 2016

इन चीजों से शिवलिंग को स्नान कराने पर सभी इच्छाएं पूरी होती हैं.

शिव पूजा का सबसे पावन दिन है सोमवार और इस शिव मंदिरों में भक्तों का भारी जमावड़ा देखा जा सकता है. सारे देवों में शिव ही ऐसे देव हैं जो अपने भक्‍तों की भक्ति-पूजा से बहुत जल्‍दी ही प्रसन्‍न हो जाते हैं. शिव भोले को आदि और अनंत माना गया है जो पृथ्वी से लेकर आकाश और जल से लेकर अग्नि हर तत्व में विराजमान हैं.
शिव पूजा में बहुत सी ऐसी चीजें अर्पित की जाती हैं जो अन्‍य किसी देवता को नहीं चढ़ाई जाती, जैसे- आक, बिल्वपत्र, भांग आदि. इसी तरह शिव पूजा में कई ऐसी चीजें होती हैं जो आपकी पूजा का फल देने की बजाय आपको नुकसान पहुंचा सकती हैं...
1. हल्‍दी: हल्‍दी खानपान का स्‍वाद तो बढ़ाती है साथ ही धार्मिक कार्यों में भी हल्दी का महत्वपूर्ण स्थान माना गया है. लेकिन शिवजी की पूजा में हल्दी नहीं चढ़ाई जाती है. हल्दी उपयोग मुख्य रूप से सौंदर्य प्रसाधन में किया जाता है. शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग पुरुषत्व का प्रतीक है, इसी वजह से महादेव को हल्दी नहीं चढ़ाई जाती.
2. फूल: शिव को कनेर और कमल के अलावा लाल रंग के फूल प्रिय नहीं हैं. शिव को केतकी और केवड़े के फूल चढ़ाने का निषेध किया गया है.
3. कुमकुम या रोली: शास्त्रों के अनुसार शिव जी को कुमकुम और रोली नहीं लगाई जाती है.
4. शि‍व पूजा में वर्जित है शंख: शंख भगवान विष्णु को बहुत ही प्रिय हैं लेकिन शिव जी ने शंखचूर नामक असुर का वध किया था इसलिए शंख भगवान शिव की पूजा में वर्जित माना गया है.
5. नारियल पानी: नारियल पानी से भगवान श‌िव का अभ‌िषेक नहीं करना चाह‌िए क्योंक‌ि नारियल को लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है इसल‌िए सभी शुभ कार्य में नारियल का प्रसाद के तौर पर ग्रहण किया जाता है. लेक‌िन श‌िव पर अर्प‌ित होने के बाद नारियल पानी ग्रहण योग्य नहीं रह जाता है.
6. तुलसी दल: तुलसी का पत्ता भी भगवान श‌िव को नहीं चढ़ाना चाह‌‌िए. इस संदर्भ में असुर राज जलंधर की कथा है ज‌िसकी पत्नी वृंदा तुलसी का पौधा बन गई थी. श‌िव जी ने जलंधर का वध क‌िया था इसल‌िए वृंदा ने भगवान श‌िव की पूजा में तुलसी के पत्तों का प्रयोग न करने की बात कही थी.
शिव पूजन में चढ़ने वाली चीजें
जल, दूध, दही, शहद, घी, चीनी, ईत्र, चंदन, केसर, भांग. इन सभी चीजों को एक साथ मिलाकर या एक-एक चीज शिवलिंग पर चढ़ा सकते हैं. शिवपुराण में बताया गया है कि इन चीजों से शिवलिंग को स्नान कराने पर सभी इच्छाएं पूरी होती हैं.
10 चीजें और उनसे मिलने वाले फल
1. मंत्रों का उच्चारण करते हुए शिवलिंग पर जल चढ़ाने से हमारा स्वभाव शांत होता है. आचरण स्नेहमय होता है.
2. शहद चढ़ाने से हमारी वाणी में मिठास आती है.
3. दूध अर्पित करने से उत्तम स्वास्थ्य मिलता है.
4. दही चढ़ाने से हमारा स्वभाव गंभीर होता है.
5. शिवलिंग पर घी अर्पित करने से हमारी शक्ति बढ़ती है.
6. ईत्र से स्नान करवाने से विचार पवित्र होते हैं.
7. शिवजी को चंदन चढ़ाने से हमारा व्यक्तित्व आकर्षक होता है. समाज में मान-सम्मान प्राप्त होता है.
8. केशर अर्पित करने से हमें सौम्यता प्राप्त होती है.
9. भांग चढ़ाने से हमारे विकार और बुराइयां दूर होती हैं.
10. शकर चढ़ाने से सुख और समृद्धि बढ़ती है.
शिव पूजन की सामान्य विधि
जिस दिन शिव पूजन करना चाहते हैं, उस दिन सुबह स्नान आदि नित्य कर्मों से निवृत्त होकर पवित्र हो जाएं. इसके बाद घर के मंदिर में ही या किसी शिव मंदिर जाएं. मंदिर पहुंचकर भगवान शिव के साथ माता पार्वती और नंदी को गंगाजल या पवित्र जल अर्पित करें. जल अर्पित करने के बाद शिवलिंग पर चंदन, चावल, बिल्वपत्र, आंकड़े के फूल और धतूरा चढ़ाएं.
पूजन में इस मंत्र का जप करें
मन्दारमालांकलितालकायै कपालमालांकितशेखराय।
दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नम: शिवायै च नम: शिवाय।।
पूजा संपन्न करने के लिए भगवान शिव को घी, शक्कर का भोग लगाएं और इसके बाद धूप, दीप से आरती करें.

Monday 7 March 2016

जानें क्यों कहा जाता है महाशिवरात्र‍ि के व्रत को सबसे ताकतवर,जानें क्या हैं इस व्रत वो नियम

भगवान शिव में गहरी आस्था रखने वालों के लिए महाशिवरात्र‍ि किसी महोत्सव से कम नहीं है. माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह हुआ था. यही वजह है कि शिव भक्त इसे विशेष धूमधाम के साथ मनाते हैं.वहीं मान्यता यह भी है कि इसी दिन भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकला विष पिया था और उनको नींद न आने देने के लिए गण पूरी रात उनके साथ जागे थे. उनका आशीर्वाद पाने के लिए वे इस दिन खास रीतियों से व्रत भी रखते हैं. बता दें कि इस व्रत को सबसे ताकतवर व्रत भी कहा जाता है.
महाशिवरात्र‍ि पर व्रत रखने वालों को सच्चे मन और तमाम दोषों से दूर होकर इस दिन शिव अराधना करनी चाहिए. शिव को हर मनोकामना पूरी करने वाला माना जाता है और वे अपने भक्तों के सभी कष्ट दूर करते हैं.
कब से शुरु है व्रत
इस साल महाशिवरात्र‍ि का योग 7 मार्च दोपहर 1:20 से शुरू होगा. शाम की पूजा का समय 6:42 बताया जा रहा है. इसके बाद यह पूजा का समय रात 9:26, 8 मार्च की सुबह 12:31 और फिर सुबह 3:36 से लेकर 6:42 तक का है. यानी महा शिवरात्र‍ि की पूजा 8 मार्च को सुबह 6:42 तक चलेगी. वैसे महाशिवरात्र‍ि की चर्तुदशी तिथि 8 मार्च को सुबह 10:34 मिनट तक चलेगी. इसके बाद शिव भक्तों को नहाकर अपना व्रत खोलना चाहिए.
जानें क्या हैं इस व्रत वो नियम जिनका पालन भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए किया जाना चाहिए :
  •   महाशिवरात्र‍ि का व्रत अगले दिन सुबह तक चलता है. इस दौरान गर्म पानी और काले तिल से स्नान करें. माना जाता है कि इस तरह तन और मन, दोनों ही पवित्र होते हैं.
  •   शिवलिंग को दूध और शहद से स्नान कराना चाहिए.
  •   दिन में ऊं नम: शिवाय का जाप करते रहें.
  •   अगर स्वस्थ हों तो ही निर्जल व्रत रखें.
  •   सूरज ढलने के बाद इस व्रत में कुछ ग्रहण नहीं किया जाता है. व्रत में कुट्टू का आटा, साबूदाना, सेंधा नमक, ताजे फल आदि लेने चाहिए.
  •   इस दिन दान करना भी अच्छा रहता है.

Saturday 5 March 2016

सैकड़ों साल पहले गोस्वामी तुलसीदास ने बता दिया था कि सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी कितनी है

हनुमान चालीसा सैकड़ों साल पहले गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रची गई थी। इसमें तुलसीदासजी ने उस समय में ही बता दिया था कि सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी कितनी है। यहां जानिए हनुमान चालीसा में किस प्रकार बताई गई है सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी...
हनुमान चालीसा के इस दोहे में है सूर्य-पृथ्वी के बीच की दूरी
जुग (युग) सहस्त्र जोजन (योजन) पर भानु।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
इस दोहे का सरल अर्थ यह है कि हनुमानजी ने एक युग सहस्त्र योजन की दूरी पर स्थित भानु यानी सूर्य को मीठा फल समझकर खा लिया था।
  गणित छिपा है हनुमान चालीसा के दोहे में
हनुमानजी ने एक युग सहस्त्र योजन की दूरी पर स्थित भानु यानी सूर्य को मीठा फल समझकर खा लिया था।
एक युग= 12000 वर्ष
एक सहस्त्र= 1000
एक योजन= 8 मील
युगxसहस्त्रxयोजन=पर भानु
12000 x 1000 x 8 मील = 96000000 मील
एक मील = 1.6 किमी
96000000 x 1.6 = 153600000 किमी
इस गणित के आधार गोस्वामी तुलसीदास ने प्राचीन समय में ही बता दिया था कि सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर है।
 
शास्त्रों के अनुसार एक युग में होते हैं कुल 12000 दिव्य वर्ष
शास्त्रों के अनुसार एक लौकिक युग चार भागों में बंटा हुआ है। ये चार भाग हैं सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग। इसी लौकिक युग के आधार पर मन्वंतर और कल्प की गणना ग्रंथों में की गई है। इस गणना के अनुसार चारों युगों का संध्या काल (युग प्रारंभ होने के पहले का समय) और संध्यांश (युग समाप्त होने के बाद का समय) के साथ 12000 दिव्य वर्ष माने गए हैं।
चार युगों के दिव्य वर्षों की संख्या इस प्रकार है-
सतयुग-4000 दिव्य वर्ष
त्रेतायुग-3000 दिव्य वर्ष
द्वापरयुग- 2000 दिव्य वर्ष
कलियुग- 1000 दिव्य वर्ष
इस प्रकार चारों युग के दिव्य वर्षों की संख्या है 10000 दिव्य वर्ष।
चारों युगों के संध्या काल के दिव्य वर्ष हैं 400 + 300 + 200 + 100 = 1000 दिव्य वर्ष और संध्यांश के भी 1000 दिव्य वर्ष हैं।
चारों युग के दिव्य वर्ष + संध्या काल के दिव्य वर्ष + संध्यांश के दिव्य वर्ष = कुल दिव्य वर्ष
इस प्रकार 10000 + 1000 + 1000 = 12000 दिव्य वर्ष।
 
एक दिव्य वर्ष में मनुष्यों के 360 वर्ष माने गए हैं। अत: चारों युग में 12000 x 360 = 4320000 मनुष्य वर्ष हैं।
अत: सतयुग 1728000 मनुष्य वर्षों का माना गया है।
त्रेतायुग 1296000 मनुष्य वर्षों का माना गया है।
द्वापरयुग 864000 मनुष्य वर्षों का माना गया है।
कलियुग 432000 मनुष्य वर्षों का है, जिसमें से अभी करीब पांच हजार साल व्यतीत हो चुके हैं। कलियुग के अभी भी करीब 427000 मनुष्य वर्ष शेष हैं।
 
ये है पुरा प्रसंग...
शास्त्रों के अनुसार हनुमानजी भगवान शंकर के ही अवतार हैं और उन्हें जन्म से ही उन्हें कई दिव्य शक्तियां प्राप्त थीं। हनुमान चालीसा के अनुसार एक समय जब बाल हनुमान खेल रहे थे, तब उन्हें सूर्य ऐसे दिखाई दिया जैसे वह कोई मीठा फल हो। वे तुरंत ही सूर्य तक उड़कर पहुंच गए।हनुमानजी ने स्वयं का आकार भी इतना विशाल बना लिया कि उन्होंने सूर्य को ही खा लिया। हनुमानजी के मुख में सूर्य के जाते ही पूरी सृष्टि में अंधकार फैल गया। सभी देवी-देवता डर गए। जब देवराज इंद्र को यह मालूम हुआ कि किसी वानर बालक ने सूर्य को खा लिया है तब वे क्रोधित हो गए।क्रोधित इंद्र हनुमानजी के पास पहुंचे और उन्होंने बाल हनुमान की ठोड़ी पर वज्र से प्रहार कर दिया। इस प्रहार से केसरी नंदन की ठोड़ी कट गई और इसी वजह से वे हनुमान कहलाए। संस्कृत में ठोड़ी को हनु कहा जाता है। हनुमान का एक अर्थ है निरहंकारी या अभिमानरहित। हनु का मतलब हनन करना और मान का मतलब अहंकार। यानी जिसने अपने अहंकार का हनन कर लिया हो। हनुमानजी को कोई अभिमान रहित हैं।