Thursday 12 May 2016

जानें 5 परंपराओं के वैज्ञानिक कारण

मंदिर में चप्पल पहनकर क्यों नहीं जाते हैं?
हमारे यहां हर धर्म के देवस्थलों पर नंगे पांव प्रवेश करने का रिवाज है। चाहे मंदिर हो या मस्जिद गुरुद्वारा हो या जैनालय सभी धर्मों के देवस्थलों के पर सभी श्रद्धालु जूते-चप्पल बाहर उतारकर ही प्रवेश करते हैं। दरअसल, देवस्थानों का निर्माण कुछ इस प्रकार से किया जाता है कि उस स्थान पर काफी सकारात्मक ऊर्जा एकत्रित होती रहती है।
नंगे पैर जाने से वह ऊर्जा पैरों के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश कर जाती है। जो कि हमारे स्वास्थ्य के लिए भी बहुत लाभदायक रहती है। साथ ही, नंगे पैर चलने से एक्यूप्रेशर के फायदे भी मिलते हैं। दरअसल, आजकल अधिकांश लोग घर में भी हर समय चप्पल पहनें रहते हैं। इसलिए हम देवस्थानों में जाने से पूर्व कुछ देर ही सही पर जूते-चप्पल रूपी भौतिक सुविधा का त्याग करते हैं। इस त्याग को तपस्या के रूप में भी देखा जाता है। जूते-चप्पल में लगी गंदगी से मंदिर की पवित्रता भंग ना हो, इस वजह से भी देवस्थानों में नंगे पैर जाते हैं।
 
आपको पता है, नहाने से पहले खाना क्यों नहीं खाना चाहिए?
आपने अक्सर अपने घर के बुजुर्गों को यह कहते हुए सुना होगा कि नहाने से पहले खाना नहीं खाना चाहिए। हालांकि वर्तमान समय में इन बातों पर गौर नहीं किया जाता, लेकिन इस तथ्य के पीछे न सिर्फ धार्मिक बल्कि वैज्ञानिक कारण भी हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार स्नान से शरीर के हर भाग को नया जीवन मिलता है। शरीर पर एकत्र हर तरह का मैल नहाने से साफ हो जाता है और एक नई ताजगी व स्फूर्ति आ जाती है। जिससे स्वाभाविक रूप से भूख लगती है। उस समय किए गए भोजन का रस हमारे शरीर के लिए पुष्टिवर्धक होता है।जबकि नहाने से पहले कुछ भी खाने से हमारी जठराग्नि उसे पचाने में लग जाती है।

नहाने पर शरीर ठंडा हो जाता है जिससे पेट की पाचन शक्ति धीमी हो जाती है। इसके कारण आंते कमजोर हो जाती हैं व कब्ज की शिकायत रहती है। इसके अलावा अन्य कई तरह के रोग हो सकते हैं। इसलिए नहाने से पहले भोजन करना वर्जित माना गया है।आवश्यक हो तो गन्ने का रस, पानी, दूध, फल व दवा नहाने से पहले ली जा सकती है, क्योंकि इनमें पानी की मात्रा अधिक होती है।
 
सूर्यास्त के समय नहीं करनी चाहिए पढ़ाई क्योंकि...
हिंदू धर्म में दैनिक दिनचर्या से जुड़ी अनेक परंपराएं हैं। उन्हीं में से एक है सूर्यास्त के समय पढ़ाई न करने की। दरअसल, ये पंरपरा पूरी वैज्ञानिक सोच के साथ बनाई गई है, क्योंकि सूर्यास्त के समय सूर्य का प्रकाश कुछ धुंधला सा हो जाता है। इसलिए इस समय किसी भी तरह की लाइट में पढऩे पर आंखों पर अधिक जोर पड़ता है और आंखों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
कहते हैं शाम के समय पढ़ाई नहीं करना चाहिए। इस समय तो पूरे भक्तिभाव से भगवान की पूजा-अर्चना व संध्या करनी चाहिए। इस संबंध में विद्वानों की मान्यता है कि सूर्यास्त के समय पढ़ाई करने से एकाग्रता में कमी आती है। साथ ही यश, लक्ष्मी, विद्या आदि सभी का नाश हो जाता है।
 
सूर्योदय से पहले क्यों उठना चाहिए?
हिंदू धर्म में सूर्योदय से पहले उठना सबसे अच्छा माना जाता है।रात का अंतिम प्रहर जिसे ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं। हमारे ऋषि मुनियों ने उसका विशेष महत्व बताया है। दरअसल, उनके अनुसार यह समय जागने के लिए सर्वोत्तम है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने से सौंदर्य, बल, विद्या, बुद्धि और स्वास्थ्य मिलता है। ब्रह्म मुहूर्त का विशेष महत्व बताने के पीछे हमारे विद्वानों की वैज्ञानिक सोच निहित थी।
वैज्ञानिक शोधों से ज्ञात हुआ है कि ब्रह्म मुहूर्त में वायु मंडल प्रदूषित नहीं होता है। इसी समय वायु मंडल में ऑक्सीजन (प्राण वायु) की मात्रा सबसे ज्यादा (41 प्रतिशत) होती है, जो फेफड़ों की शुद्धि के लिए महत्वपूर्ण होती है। शुद्ध हवा मिलने से मन, दिमाग भी स्वस्थ रहता है। आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में उठकर टहलने से शरीर में संजीवनी शक्ति का संचार होता है। यही कारण है कि इस समय बहने वाली वायु को अमृततुल्य (अमृत के समान) कहा गया है। इसके अलावा यह समय अध्ययन के लिए भी सर्वोत्तम बताया गया है, क्योंकि रात को आराम करने के बाद सुबह जब हम उठते हैं तो शरीर व दिमाग में भी स्फूर्ति व ताजगी रहती है।
 
किचन में चप्पल नहीं पहनना चाहिए क्योंकि...
प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों और विद्वानों द्वारा किचन में चरण पादुकाएं यानी जूते-चप्पल नहीं पहनने की बात कही गई है। दरअसल, इसकी वजह यह है कि कीचन में जूते-चप्पल के साथ गंदगी भी आती है जो कि परिवार के सदस्यों के लिए स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक होती है।

इस वजह से घर में जूते-चप्पल पहनना उचित नहीं है।साथ ही, इसके पीछे धार्मिक कारण ये है कि कीचन में जो खाना बनता है उसका नैवैद्य भगवान को लगता है। कहते हैं किचन में अन्नपूर्णा देवी भी निवास करती हैं। ऐसे में यदि हम जूते-चप्पल पहनकर किचन में काम करते हैं तो भगवान का भी अपमान होता है।

Monday 2 May 2016

ध्यान रखें कि भूलकर भी आपसे इन 4 लोगों का अपमान न हो जाए।



वाल्मीकि रामायण में 4 ऐसे लोगों के बारे में बताया गया है, जिनका अपमान करना महापाप है। इन 4 का अपमान करने वाला चाहे कितनी ही पूजा-पाठ या दान-धर्म कर ले, लेकिन उसका पाप नहीं मिटता और उसे इसकी सजा भुगतनी ही पड़ती है। इसलिए, ध्यान रखें कि भूलकर भी आपसे इन 4 लोगों का अपमान हो जाए।
जानें कौन हैं ये 4 लोग-
मातरं पितरं विप्रमाचार्य चावमन्यते।
पश्यति फलं तस्य प्रेतराजवशं गतः।।
1. गुरु या शिक्षक
हमें शिक्षा और ज्ञान देने वाले को गुरु कहा जाता हैं। गुरु का दर्जा बहुत ऊंचा माना जाता है। सभी धर्म ग्रंथों में गुरु का सम्मान करने की बात कही गई है। जो छात्र अपने गुरु का सम्मान नहीं करता, उनकी दी गई शिक्षा का अनादर करता है, वह कभी भी सफलता हासिल नहीं कर पाता। गुरु का अपमान करने वालों को कभी भी सम्मान नहीं मिलता। ये एक ऐसा पाप कहा गया है, जिसका प्रायश्चित किसी भी तरह नहीं किया जा सकता। इसलिए कभी भी अपने गुरुओं का अपमान नहीं करना चाहिए।
2. ज्ञानी या पंडित
ज्ञानी और पंडित देवतुल्य माने जाते हैं। वे भी देवताओं के समान पूजनीय होते हैं। ज्ञानी लोगों की संगति से हमें कई लाभ होते हैं, हमारी किसी भी मुश्किल परिस्थिति का हल ज्ञानी मनुष्य अपनी सूझ-बूझ और अनुभव से निकाल सकता है। ऐसे लोगों का कभी भी अपमान नहीं करना चाहिए। ऐसे लोगों का अपमान करना महापाप कहा जाता है और इसके कई दुष्परिणाम झेलने पड़ सकते हैं। इसलिए, ज्ञानी या पंडितों का हमेशा सम्मान करें।
3. माता
मां को भगवान का दर्जा दिया जाता है। कई धर्म ग्रंथों में मां का सम्मान करने और भूलकर भी उनका अपमान करने के बारे में बताया गया है। माता की सेवा करने वाला मनुष्य जीवन में सभी सफलताएं पाता है। इसके विपरीत उनका अपमान करने वाला मनुष्य कभी खुश नहीं रह पाता। ऐसे मनुष्य पर भगवान भी रूठे हुए रहते हैं और उसे अपने किसी भी पुण्य कर्म का फल नहीं मिलता। इसलिए, ध्यान रखें किसी भी परिस्थिति में अपनी माता का अपमान करें।
4. पिता
हर मनुष्य को अपने माता-पिता में ही अपना पूरा विश्व जानना चाहिए। जो व्यक्ति अपने पिता का सम्मान नहीं करता, उनकी आज्ञा का पालन नहीं करता, वह पशु के समान माना जाता है। माता-पिता का अपमान करना मनुष्य का सबसे बड़ा अवगुण माना जाता है। ऐसा करने वाला मनुष्य चाहे कितनी ही तरक्की कर ले, लेकिन वह समाज में मान-सम्मान नहीं पाता। इसलिए किसी को भी अपने पिता का अपमान बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए।

सुंदरकाण्ड से जुड़ी 5 अहम बातें



सुंदरकाण्ड से जुड़ी 5 अहम बातें

1 :- सुंदरकाण्ड का नाम सुंदरकाण्ड क्यों रखा गया ?
हनुमानजी, सीताजी की खोज में लंका गए थे और लंका त्रिकुटांचल पर्वत पर बसी हुई थी। त्रिकुटांचल पर्वत यानी यहां 3 पर्वत थे।

  • पहला सुबैल पर्वत, जहां के मैदान में युद्ध हुआ था।
  • दुसरा नील पर्वत, जहां राक्षसों के महल बसे हुए थे।
  • तीसरे पर्वत का नाम है सुंदर पर्वत, जहां अशोक वाटिका निर्मित थी। इसी वाटिका में हनुमानजी और सीताजी की भेंट हुई थी।

इस काण्ड की सबसे प्रमुख घटना यहीं हुई थी, इसलिए इसका नाम सुंदरकाण्ड रखा गया।
2 :- शुभ अवसरों पर सुंदरकाण्ड का पाठ क्यों?
शुभ अवसरों पर गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस के सुंदरकाण्ड का पाठ किया जाता है। शुभ कार्यों की शुरूआत से पहले सुंदरकाण्ड का पाठ करने का विशेष महत्व माना गया है।
जबकि किसी व्यक्ति के जीवन में ज्यादा परेशानियाँ हों, कोई काम नहीं बन पा रहा हो, आत्मविश्वास की कमी हो या कोई और समस्या हो, सुंदरकाण्ड के पाठ से शुभ फल प्राप्त होने लग जाते हैं, कई ज्योतिषी या संत भी विपरित परिस्थितियों में सुंदरकाण्ड करने की सलाह देते हैं।
3 :- जानिए सुंदरकाण्ड का पाठ विषेश रूप से क्यों किया जाता है?
माना जाता हैं कि सुंदरकाण्ड के पाठ से हनुमानजी प्रशन्न होते हैं।सुंदरकाण्ड के पाठ में बजरंगबली की कृपा बहुत ही जल्द प्राप्त हो जाती है।जो लोग नियमित रूप से सुंदरकाण्ड का पाठ करते हैं, उनके सभी दुखः दुर हो जाते हैं, इस काण्ड में हनुमानजी ने अपनी बुद्धि और बल से सीता माता की खोज की है।इसी वजह से सुंदरकाण्ड को हनुमानजी की सफलता के लिए याद किया जाता है।

4 :- सुंदरकाण्ड से क्यों मिलता है मनोवैज्ञानिक लाभ ?
वास्तव में श्रीरामचरितमानस के सुंदरकाण्ड की कथा सबसे अलग है, संपूर्ण श्रीरामचरितमानस भगवान श्रीराम के गुणों और उनके पुरूषार्थ को दर्शाती है, सुंदरकाण्ड एक मात्र ऐसा अध्याय है जो श्रीराम के भक्त हनुमान की विजय का काण्ड है।मनोवैज्ञानिक नजरिए से देखा जाए तो यह आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति बढ़ाने वाला काण्ड है, सुंदरकाण्ड के पाठ से व्यक्ति को मानसिक शक्ति प्राप्त होती है, किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए आत्मविश्वास मिलता है।

5 :- सुंदरकाण्ड से क्यों मिलता है धार्मिक लाभ ?
सुंदरकाण्ड के वर्णन से मिलता है धार्मिक लाभ, हनुमानजी की पूजा सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली मानी गई है।बजरंगबली बहुत जल्दी प्रशन्न होने वाले देवता हैं, शास्त्रों में इनकी कृपा पाने के कई उपाय बताए गए हैं, इन्हीं उपायों में से एक उपाय सुंदरकाण्ड का पाठ करना है, सुंदरकाण्ड के पाठ से हनुमानजी के साथ ही श्रीराम की भी विशेष कृपा प्राप्त होती है।मित्रों किसी भी प्रकार की परेशानी हो सुंदरकाण्ड के पाठ से दूर हो जाती है, यह एक श्रेष्ठ और सरल उपाय है, इसी वजह से काफी लोग सुंदरकाण्ड का पाठ नियमित रूप से करते हैं,
हनुमानजी जो कि वानर थे, वे समुद्र को लांघकर लंका पहुंच गए वहां सीता माता की खोज की, लंका को जलाया सीता माता का संदेश लेकर श्रीराम के पास लौट आए, यह एक भक्त की जीत का काण्ड है, जो अपनी इच्छाशक्ति के बल पर इतना बड़ा चमत्कार कर सकता है, सुंदरकाण्ड में जीवन की सफलता के महत्वपूर्ण सूत्र भी दिए गए हैं, इसलिए पुरी रामायण में सुंदरकाण्ड को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है, क्योंकि यह व्यक्ति में आत्मविश्वास बढ़ाता है, इसी वजह से सुंदरकाण्ड का पाठ विशेष रूप से किया जाता है।