(15 जनवरी) मकर संक्रांति है। इस पर्व पर मुख्य रूप से तिल-गुड़
से बनी मिठाई खाने और पतंग उड़ाने की परंपरा है। इन परंपराओं के पीछे कुछ
वैज्ञानिक तथ्य भी छिपे हैं, जिसे बहुत कम लोग
जानते हैं। आज हम आपको मकर संक्रांति से जुड़ी इन परंपराओं के पीछे छिपे वैज्ञानिक
कारणों के बारे में बता रहे हैं।
इसलिए खाते हैं तिल-गुड़ के लड्डू
मकर संक्रांति पर विशेष रूप से तिल-गुड़ के पकवान खाने की परंपरा है। कहीं
तिल-गुड़ के स्वादिष्ट लड्डू बनाए जाते हैं तो कहीं चक्की बनाई जाती है। तिल-गुड़
की गजक भी लोगों को खूब भाती है। मकर संक्रांति पर तिल-गुड़ का सेवन करने के पीछे
वैज्ञानिक आधार भी है। सर्दी के मौसम में जब शरीर को गर्मी की आवश्यकता होती है,
तब तिल-गुड़ के व्यंजन यह काम बखूबी करते हैं।
तिल में तेल की प्रचुरता रहती है और गुड़ की तासीर भी गर्म होती है। तिल व
गुड़ को मिलाकर जो व्यंजन बनाए जाते हैं, वह सर्दी के मौसम में हमारे शरीर में आवश्यक गर्मी पहुंचाते हैं। यही कारण है
कि मकर संक्रांति के अवसर पर तिल व गुड़ के व्यंजन प्रमुखता से खाए जाते हैं।
इसलिए उड़ाते हैं इस दिन पतंग
मकर संक्रांति पर लोग अपनी छतों पर पतंग उड़ाकर इस उत्सव का मजा लेते हैं। मकर
संक्रांति पर पतंग उड़ाने के पीछे कोई धार्मिक कारण नहीं अपितु वैज्ञानिक पक्ष
अवश्य है। सर्दी के कारण हमारे शरीर में कफ की मात्रा बढ़ जाती है और त्वचा भी
रुखी हो जाती है। मकर संक्रांति पर सूर्य उत्तरायण होता है, इस कारण इस समय सूर्य की किरणें औषधि का काम करती हैं।
पतंग उड़ाते समय हमारा शरीर सीधे सूर्य की किरणों के संपर्क में आ जाता है,
जिससे सर्दी से जुड़ी शारीरिक समस्याओं से
निजात मिलती है व त्वचा को विटामिन डी भी पर्याप्त मात्रा में मिलता है। यही कारण
है कि मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने की परंपरा की शुरूआत हुई।
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