Monday 18 January 2016

कौन है ऋषि दुर्वासा

 कौन है ऋषि दुर्वासा
ऋषि दुर्वासा भगवान शिव के अवतार हैं। भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र अत्रि और उनकी पत्नी अनुसूया की तपस्या से खुश होकर भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों ने उन्हें दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। भगवान के ऐसा कहने पर अत्रि और अनुसूया ने तीनों देवों को अपने पुत्रों के रूप में जन्म लेने का वरदान मांगा। इसी वरदान के फलस्वरूप भगवान ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा, विष्णु का अंश से दत्तात्रेय और शिव के अंश से दुर्वासा उत्पन्न् हुए। ऋषि दुर्वासा भगवान शिव के रुद्र रूप से उत्पन्न हुए थे, इसलिए वे अधिक क्रोधी स्वभाव के थे। भगवान शिव के अवतार ऋषि दुर्वासा का वर्णन कई पुराणों और ग्रंथों में पाया जाता है।
 

दुर्वासा के वरदान ने की थी चीरहरण से द्रौपदी की रक्षा

जब युधिष्ठिर जुए में अपनी पत्नी द्रौपदी को हार गए, तब द्रौपदी पर दुर्योधन का अधिकार हो गया था। द्रौपदी का अपमान करने के लिए दुर्योधन ने उसे कौरवों की सभा में बुलाया। दुःशासन द्वारा द्रौपदी का चीरहरण करके का प्रयास किया गया, लेकिन द्रौपदी के वस्त्र को बढ़ाकर भगवान ने उसकी रक्षा की थी। द्रौपदी को संकट के समय उसके अन्नत (कभी खत्म न होने वाले) हो जाने का वरदान ऋषि दुर्वासा ने दिया था।

ये है वरदान की पूरी कथा

शिवपुराण के अनुसार, भगवान शिव के अवतार ऋषि दुर्वासा एक बार स्नान करने के लिए नदी के तट पर गए थे। नदी का बहाव बहुत तेज होने के कारण ऋषि दुर्वासा के कपड़े नदी में बह गए। ऋषि दुर्वासा से कुछ दूरी पर द्रौपदी भी स्नान कर रही थी। ऋषि दुर्वासा की मदद करने के लिए द्रौपदी ने अपनी वस्त्र में से एक टुकड़ा फाड़कर ऋषि को दे दिया था। इस बात से ऋषि द्रौपदी पर बहुत प्रसन्न हुए और संकट के समय उसके वस्त्र अन्नत हो जाने और उसकी रक्षा का वरदान दिया था। इसी वरदान के कारण कौरव सभा में दुःशासन द्वारा द्रौपदी की साड़ी खिंचने पर वह बढ़ती ही गई और उसके सम्मान की रक्षा हुई थी।
 

ऋषि दुर्वासा ने ली थी श्रीराम की परीक्षा

शिवपुराण के अनुसार, भगवान शिव के अवतार दुर्वासा ने भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम की वचनबद्धता की परीक्षा ली थी। एक बार काल ने ऋषि का रूप धारण करके श्रीराम के साथ शर्त लगाई थी कि ‘मेरे साथ बात करते समय कोई भी श्रीराम के पास न आए, जो भी इस बात का पालन नहीं करेगा श्रीराम तुरंत ही उसका त्याग कर देंगे।’ श्रीराम की परीक्षा लेने के लिए ऋषि दुर्वासा ने हठपूर्वक लक्ष्मण को श्रीराम के पास भेजा। ऐसा होने पर श्रीराम ने तुरंत ही लक्ष्मण का त्याग कर दिया था।
 

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