रामगढ झील से एक किलोमीटर आगे पहाड़ी की तलहटी में बना जमवाय माता का
मंदिर आज भी देश के विभिन्न हिस्सों में बसे कछवाह वंश के लोगों की आस्था
का केन्द्र बना हुआ है। जमवाय माता कुलदेवी होने से नवरात्र एवं अन्य
अवसरों पर देशभर में बसे कछवाह वंश के लोग यहां आते हैं और मां को प्रसाद,
पोशाक एवं 16 शृंगार का सामान भेंट करते हैं। कछवाहों के अलावा यहां अन्य
समाजों के लोग भी मन्नत मांगने आते हैं। यहां पास ही में रामगढ़ झील एवं
वन्य अभयारण्य होने से पर्यटक भी बड़ी संख्या में आते हैं।
प्राचीन मान्यता के अनुसार राजकुमारों को रनिवास के बाहर तब तक नहीं
निकाला जाता था तब तक कि जमवाय माता के धोक नहीं लगवा ली जाती थी। नवरात्र
में यहां पर मेले जैसा माहौल रहता है। यह मंदिर रोचक कथा के इतिहास को
समेटे हुए है। मंदिर के पुजारी राजेश कुमार वशिष्ठ ने बताया कि दुल्हरायजी
ने 11वीं सदी के अंत में मीणों से युद्ध किया। शिकस्त खाकर वे अपनी फौज के
साथ में बेहोशी की अवस्था में रणक्षेत्र में गिर गए। राजा समेत फौज को
रणक्षेत्र में पड़ा देख कर विपक्षी सेना खुशी में चूर होकर खूब जश्न मनाने
लगी।
रात्रि के समय देवी बुढवाय रणक्षेत्र में आई और
दुल्हराय को बेहोशी की अवस्था में पड़ा देख उसके सिर पर हाथ फेर कर कहा-
उठ, खड़ा हो। तब दुल्हराय खड़े होकर देवी की स्तुति करने लगे। फिर माता
बुढ़वाय बोली कि आज से तुम मुझे जमवाय के नाम से पूजना और इसी घाटी में
मेरा मंदिर बनवाना। तेरी युद्ध में विजय होगी। तब दुल्हराय ने कहा कि माता,
मेरी तो पूरी फौज बेहोश है। माता के आशीर्वाद से पूरी सेना खड़ी हो गई।
दुल्हराय रात्रि में दौसा पहुंचे और वहां से अगले दिन आक्रमण किया आैर उनकी
विजय हुर्इ।
वे जिस स्थान पर बेहोश होकर गिरे व देवी ने दर्शन
दिए थे, उस स्थान पर दुल्हराय ने जमवाय माता का मंदिर बनवाया। इस घटना का
उल्लेख कई इतिहासकारों ने भी किया है। मंदिर के गर्भगृह में मध्य में जमवाय
माता की प्रतिमा है, दाहिनी ओर धेनु एवं बछड़े एवं बायीं आेर मां बुढवाय
की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर परिसर में शिवालय एवं भैरव का स्थान भी है।
राज्यारोहण व बच्चों के मुंडन संस्कारों के लिए कछवाहा वंश के लोग यहां आते
हैं। राजा ने अपने अाराध्य देव रामचंद्र एवं कुलदेवी जमुवाय के नाम पर
जमुवारामगढ़ का नामकरण किया था।
राजा कांकील भी युद्ध करते हुए फौज के साथ बेहोश
होकर रणक्षेत्र में गिर गया था। तब भी जमवाय माता सफेद धेनु के रूप में आकर
अमृत रूपी दूध की वर्षा कर पूरी सेना को जीवित कर दिया। तब मां ने शत्रु
पर विजय प्राप्त कर आमेर बसाने की आदेश दिया।
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